Home
Print
Previous
Next

अंग प्रत्यारोपण, आवश्यकता एवं समस्याएं

प्रोफेसर (डॉ) अतुल गोयल
महानिदेशक,स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय,
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार

भारतीय संस्कृति में सदा से ही दान का बहुत अधिक महत्व रहा है। समय-समय पर इस महत्त्व को हम अनुभव भी करते रहे हैं। मनुष्य रूप में धरती पर अवतरित होना भी प्रभु का वह वरदान है, जिसे हमें जीवन और प्रकृति को समर्पित कर देना चाहिए। जब भी कोई आयु में छोटा व्यक्ति हमें प्रणाम करता है, हमारे हाथ तुरंत उसे आशीर्वाद देने के लिए उठते हैं, जो भी एक प्रकार का दान ही है। मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे परमात्मा की ओर से दो प्रकार के दान का साधन बनने का अवसर प्राप्त हुआ, जिसके लिए मैं सदा ही उन का आभारी रहूंगा। प्रथम चिकित्सक के रूप में जीवन दान देने का साधन और द्वितीय शिक्षक के रूप में ज्ञान प्रदान करने का साधन। ऐसा अवसर किसी- किसी को ही मिलता है। किन्तु एक दान का अवसर हर एक मनुष्य को प्राप्त हुआ है और वह है अंगदान।

इस पर आगे चर्चा करने से पूर्व, दो महान हस्तियों के व्यक्तित्व की व्याख्या आवश्यक है। इन में प्रथम हैं ऋषि दधीचि, जिन्होंने अपने जीवन में ही अपनी अस्थियों का दान किया था। इन्हीं अस्थियों से वज्र का निर्माण हुआ, और जो दानवों पर देवों की विजय का कारण बना, और द्वितीय, महारथी सूर्यपुत्र कर्ण, जिन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के अपना कवच और कुंडल देवराज इंद्र को दान कर दिए, यह जानते हुए कि यह दान महाभारत के युद्ध में अर्जुन के हाथों उनकी हार का कारण सिद्ध होगा। हिन्दू शास्त्र में भी कई प्रकार के दान बताये गए हैं, जिन का अपना महत्त्व होता है, जैसे कि कन्यादान, पिंडदान इत्यादि। किन्तु मेरी समझ से, किसी भी दान से उत्तम है, मरणोपरांत अंगदान, जिससे मनुष्य एक से अधिक (8 या उस से अधिक) लाभार्थियों को जीवनदान दे सकने में सक्षम है। दो व्यक्ति आप की दृष्टि से संसार को देख पाएं, दो को आप के गुर्दों से लाभ हो, दो आप के फेफड़ों से लाभान्वित हों, एक से अधिक को आप के जिगर का लाभ पहुंचे और एक व्यक्ति में आप का ह्रदय आप के पश्चात धड़कता रहे।

इस से अधिक महत्वपूर्ण दान का अवसर मनुष्य के अतिरिक्त किसी जीव को प्राप्त नहीं है। भाग्यशाली और धन्य हैं, ऐसे मनुष्य जो इस दान को आज तक संपन्न कर पाए हैं या फिर भविष्य में करेंगे।

इस में दो राय नहीं हैं कि हमें लोगों को अंगदान और अंग प्रत्यारोपण के लिए प्रोत्साहित करना है, किन्तु साथ में इस बात के ऊपर भी भली भांति ध्यान देना है कि अंग प्रत्यारोपण इस समस्या का एकमात्र समाधान नहीं है। इस बात का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है की भारत में हर वर्ष लगभग 2 लाख नए खराब गुर्दे के रोगों का निदान किया जाता है, यदि हर वर्ष, इतने ही नए रोगियों का निदान होता आया, तो हम चाहते हुए भी हर एक ऐसे रोगी के लिए, न तो अंग जुटा पाएंगे और न ही इतने अंग प्रत्यारोपण कर पाएंगे। इसका अर्थ यह है की हमें साथ ही साथ अंगों के बेकार होने के कारणों पर भी विचार करना उतना ही आवश्यक है। हम कहीं प्रत्यारोपण को बढ़ाते हुए रोकथाम को न भूल जाएं। इस के लिए अंगों के फेलियर के कारणों पर भी ध्यान देना उतना ही आवश्यक है, जितना की अंगों का दान करना।

यद्यपि अंगों के फेलियर के कारणों में सब से अधिक मधुमेह (डायबिटीज) और उच्च रक्तचाप को जिम्मेदार ठहराया जाता है, लेकिन हमें अन्य कई बातों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। ऐसी कुछ बातों के बारे में उल्लेख अत्यंत आवश्यक है; ये हैं, बिना कारण दवाओं का सेवन, संसाधित खाद्य पदार्थों के सेवन में अत्याधिक रुचि, खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक और पेय जल को प्रदूषित करने वाले तत्व, खासकर, हैवी मेटल्स। इस के साथ हम यह भी न भूलें की अनेक अंग फेलियर आज भी संक्रामक रोगों के कारण होते हैं और हमें इन रोगों से भी बचने की आवश्यकता है, जो केवल व्यक्तिगत साफ-सफाई से भी संभव है।