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प्रथम दधीचि दर्शन यात्रा: एक विवरण


लगभग दो दशक से दधीचि देह-दान समिति के हर कार्यक्रम में महर्षि दधीचि को स्मरण किया जाता रहा है। रोमांचित करने वाला निर्णय था उस महामानव की पुण्यस्थली के दर्शन करने का। बनते-बनते कार्यक्रम का रूप एक यात्रा में परिवर्तित हो गया और 36 लोगों ने त्वरित निर्णय लिया इस यात्रा में सहभागी होने का। आशंका थी उस तपोस्थली पर, मैट्रो जीवनचर्या में तदनुरूप सुविधाओं के अभ्यस्त लोगों के लिए तदनुरूप व्यवस्थाओं को लेकर। इसका समाधान भी मिला डाॅ. कीर्तिवर्धन साहनी द्वारा। उनके अन्तरंग परिवार के सदस्य तुषार साहनी सीतापुर में बरसों से बसे हैं। समाज कार्यों में सक्रिय होने के कारण सीतापुर में उनकी एक अच्छी पहचान है। यात्रा से दो दिन पहले श्री हर्ष मल्होत्रा व श्री कीर्तिवर्धन से मिलने देह-दान समिति के अध्यक्ष श्री आलोक कुमार और उपाध्यक्ष श्री सुधीर गुप्ता गए - इसलिए कि पूरे समय का सदुपयोग व तीर्थ के महत्व की जानकारियां उनसे संबद्ध पुरोहितों द्वारा हो सकें। यह सब आलोक ने अपनी सूझ-बूझ से सुनिश्चित किया। यात्रा में, मुख्य दधीचि मंदिर परिसर में ‘स्वस्थ सबल भारत’ गोष्ठी का भी आयोजन होना था, जिसमें उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक ने आना स्वीकार किया। यात्रा की इतनी भूमिका मुझे इसलिए आवश्यक लगी कि यह यात्रा मात्र मंदिरों में पैसा चढ़ा कर, आरती लेकर और लौट कर अड़ोस-पड़ोस में प्रसाद बांटने तक सीमित नहीं थी। ‘स्वस्थ सबल भारत’ गोष्ठी के कारण वहां धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक सभी के प्रतिनिधि मंच पर थे। दधीचि देह-दान समिति के कार्यों का उद्देश्य व प्रत्येक व्यक्ति को अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति सचेत करने का एक सफल प्रयोग भी हम कर सके।

आठ नवम्बर 2014 को रात्रि 10 बजे की गाड़ी से हरदोई के लिए हमारा आरक्षण था। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर धर्मयात्रा महासंघ द्वारा तिलक लगा कर व पटके भेंट कर स्वस्ति वाचन के साथ हमें विदा किया। पूरे कार्यक्रम का लिखित पत्रक व गले में डालने के लिए सबका अलग-अलग नाम लिखा पहचान-पत्र दे दिया गया। लगभग आधे घंटे में सुधीर और अमित के सहयोग से यशवीर सेठी तथा डाॅ. विशाल चड्ढा ने सबके लिए सीटों का बंटवारा व पीने के पानी की व्यवस्था कर दी। बबीता को चुटकुले सुनाने हैं, मुझे जल्दी सोना है, सोनिया को हंसना है, सीमा को मुश्किल से हम सबका साथ मिला है ....... बस इसी इकरार-इसरार में एक घंटा निकल गया और ट्रेन का डिब्बा शांत हो गया।
सुबह पौने पांच बजे हरदोई पहुंचे। स्टेशन पर श्री छक्कू लाल शास्त्री और नैमिषारण्य से आए उनके स्वागत समूह ने स्वस्ति वाचन मंत्रों द्वारा स्वागत किया गया। बस द्वारा लगभग एक घंटे में नैमिषारण्य पहुंचे। हनुमानगढ़ी धर्मशाला में विश्राम की व्यवस्था थी। यहां स्वागत समिति के संस्थापकों श्री तुषार साहनी, श्री जयकर नाथ कपूर और श्री अजय गुप्ता सहित अन्य लोगों द्वारा हमारा स्वागत किया गया। परिवहन की व्यवस्था योगदान के रूप में शिक्षाविद और फिलेन्थ्राॅपिस्ट डाॅ. विपिन त्रिवेदी ने की। हरदोई में डाॅ. त्रिवेदी के कई स्कूल हैं और कई समाज संस्थाएं भी संचालित हैं।

सभी यात्रियों को कमरे मिल गए। सुबह की चाय पी, सभी नित्य कर्म से निपटे व नहा कर हनुमान जी मंदिर में 8 बजे की आरती के लिए इकट्ठा हो गए। हनुमानगढ़ी में महंत बजरंग दास के नेतृत्व में प्रार्थनाएं हुईं। विश्व में हनुमान जी की तीन ही प्रतिमाएं दक्षिण-मुखी हैं। इलाहाबाद में लेटी हुई, अयोध्या में बैठी हुई और नैमिषारण्य में स्वयंभू खड़ी हुई। तीनों ही स्थान हनुमानगढ़ी के नाम से जाने जाते हैं। हनुमान जी के सभी मंदिरों में देव प्रतिमा के बाएं हाथ में गदा और दाएं हाथ में पर्वत होता है। यहां इसके विपरीत दाएं हाथ में गदा व बाएं हाथ में पर्वत है। पूजन-आरती करके नाश्ते के लिए गए। वहां के कई स्थानीय लोग सस्नेह, साग्रह हमारे लिए तत्पर थे। व्यक्तिगत रूप से परिचय हुए। हमारा अगला गन्तव्य मिश्रिख था, जहां दधीचि आश्रम है। यही वो पवित्र स्थली है जहां सत्पात्र को सत्कार्य के लिए दिए जाने वाले दान की परम्परा को जीवित रखा गया। यहीं देवों के अधिपति इन्द्र याचक तथा महर्षि दधीचि महादानी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मुख्य मंदिर परिसर की ओर बढ़ने पर बाएं हाथ की दिशा पर सरोवर और दाएं हाथ की दिशा पर महंत देवदत्त गिरी जी का निवास है। मान्यता है कि अस्थि-दान से पूर्व सभी तीर्थों के जल का यहां आह्वान हुआ था और फिर इसी कुंड में अभिषिक्त होकर महर्षि समाधि लीन हुए। उनके नमक लगे शरीर को चाट-चाट कर कामधेनु ने अस्थियां अलग कर दीं। वज्र बना और असुरों के साथ युद्ध में अंततः देवताओं की विजय हुई। लघु रूप में इन्द्र और विशाल रूप में दधीचि। महंत देवदत्त गिरी जी ने, जिन्हें शरीरिक कठिनाइयां हैं पर हमारी भावनाओं का सम्मान करते हुए, हमसे पूजा करवाई और हमारी समिति के कार्यों की प्रशंसा करते हुए हमें अपने शुभाशीष दिए। समिति से जुड़ कर अंग-दान व देह-दान के लिए समाज को सचेत करने का कार्य कोई 5 साल से कर रहा है, कोई 10 साल से तो कोई इस समिति से दो-तीन साल से जुड़ा है। इस मंदिर परिसर के हर कोने को कैमरे में कैद कर लेना चाहते थे हमारे सहयात्री। और कोई-कोई तो किसी कोने में सीढ़ियों पर बैठ कर आत्मकेंद्रित हो उस क्षेत्र की तरंगों को आत्मसात् कर लेना चाहता था। डाॅ. रामऔतार तो सपत्नीक सीढ़ियों से उतर कर कुंड में तीर्थों के जल से स्वयं को सिंचित ही करने के प्रयास में थे।

यही समय वहां पर राज्यपाल जी द्वारा पूजा करने का भी था - इसलिए सीतापुर व मिश्रिख के राजनीतिक प्रमुख भी वहां दिखने लगे थे। राज्यपाल महोदय आए व मंदिर में पूजन करके उठते समय जब किसी के माध्यम से दक्षिणा देने को उद्यत हुए तो आश्चर्यजनक ढंग से पुजारी ने मना कर दिया और आग्रह पूर्वक कहा, ‘आज की दक्षिणा तो हमारे इस कुंड की सफाई करवाना ही है।’ ठीक ही तो है। तीर्थ स्थान है, राजतंत्र को ध्यान रखना ही पड़ेगा। सहज आश्वासन मिला। मंदिर से जुड़े मैदान में ‘स्वस्थ सबल भारत’ गोष्ठी का आयोजन था। सभा-स्थल खचाखच भरा हुआ था। सभी स्थाई निवासी। राज्यपाल को देखने-सुनने को उत्सुक। आश्चर्य हुआ कि दो घंटे की सभा - द्वीप प्रज्ज्वलन से लेकर और जन-गण-मन तक हर वक्ता को ध्यान से सुना गया। राज्यपाल का भाषण हो या दधीचि देह-दान समिति के अध्यक्ष आलोक कुमार के उद्गार, सीतापुर के सांसद श्री राजेश कुमार हों या हरदोई की सांसद सुश्री अंजू बाला के उद्गार, ललिता मंदिर के महंत के आशीर्वचन और देवदत्त जी का धन्यवाद प्रस्ताव। सभी में श्रोताओं को कुछ न कुछ नया सुनने-समझने को मिल रहा था। इस गोष्ठी की सफलता में कोई दैवी वरद् हस्त का आशीष ही अनुभव हो रहा था। ‘स्वस्थ सबल भारत’ गोष्ठी की जानकारी आपको सम्भवतः इसी अंक में अलग से विस्तृत रूप से पढ़ने को मिलेगी।

दोपहर के भोजन की व्यवस्था मंदिर समिति की ओर से मंदिर के प्रांगण में ही थी। हम सभी ज़मीन पर बैठे, पत्तलों में भोजन परोसा गया। सहज भाव से राज्यपाल सहित वहां के सभी प्रमुख लोगों ने हमारे साथ पंगत में बैठ कर भोजन किया। प्रेम से परोसते हुए सुस्वादु व्यंजनों को, वहां के कार्यकर्ताओं ने, प्रसाद रूप ही कर दिया। हमारे तीर्थयात्रियों के ग्रुप में अलग-अलग क्षेत्रों के लोग तो थे ही, साथ ही आर्थिक दृष्टि से सम्भ्रांत परिवारों के सदस्य भी थे। सबके चेहरों पर आनंद और संतोष के भाव स्पष्ट कर रहे थे कि वास्तव में अपने सब रूपों को एक दिन के लिए अपने से अलग कर सभी स्वत्व में आनंदित हो रहे हैं।

वहां से हम धर्मशाला गए। हमें एक घंटा विश्राम के लिए मिला व फिर सामान सहित बस में। मान्यता है कि वेद, पुराण व श्रीमद् भागवत की रचना महर्षि वेदव्यास द्वारा नैमिषारण्य में की गई थी। व्यास गद्दी के नाम से प्रतिष्ठित यहां गद्दी के दर्शन किए जाते हैं। व्यास गद्दी के प्रांगण में लगभग 5000 वर्ष पुराना वट वृक्ष है। श्रद्धावनत हो वट वृक्ष की परिक्रमा की। व्यास गद्दी के सामने ही एक बड़ा हवन कुंड है, जहां प्राचीन काल में ऋषि-मुनि यज्ञ किया करते थे। यहां से दो-ढाई किलोमीटर की दूरी पर चक्रतीर्थ है। ब्रह्मा जी द्वारा छोड़ा गया चक्र यहां आकर गिरा और जल स्रोत फूटा। इस तेज़ जल बहाव को नियमित करने के लिए ललिता देवी का प्राकट्य हुआ। इस जल कुंड के किनारे चक्र के आरों की तरह बने हुए हैं। यहां श्री छक्कू लाल शास्त्री द्वारा पूजन करवाया गया। पास में ललिता देवी के भी दर्शन किए। यह एक शक्ति पीठ है। प्राचीन तीर्थ का अहसास दिलाता मंदिर। पुजारी जी ने विधिवत पूजन करवाया। मंदिर की परिक्रमा करके बाहर निकले तो सुबह से हमारे साथ स्थानीय जानकारियां बांटते हुए, हमारी यात्रा को स्थानीय अपनेपन से जोड़ने वाले दम्पत्ति तुषार-नीरू, मंदिर के सामने के ढाबे की ओर हमें ले चले। कुछ भी कहो, तीर्थ करते हुए छोटे-छोटे शहरों के खोमचे के गोलगप्पे और चाय की दुकानों के बाहर थाल में सजे समोसे आकर्षित ही करते हैं। वहां की खास मिठाई, नाम मैं भूल गई, खोये-रबड़ी जैसी ही कुछ थी - तेज़ चीनी - आग्रह पूर्व नीरू ने खिलाई। बैंचों पर बैठ कर पतली लम्बी मेज़ पर समोसे व चाय के कुल्हड़ तेज़ी से इधर-उधर होने लगे - जैसे अब इनके भोग की बारी थी।

नैमिषारण्य से विदाई का समय था। चूंकि सभी स्थानीय प्रमुखों को समिति की ओर से बताया गया था कि यह यात्रा हर वर्ष आयोजित की जाएगी, इसलिए उन सबने उत्साह पूर्वक ‘गम्यताम् पुनरागमनाय’ भाव से हमें विदा किया और हम सब तीर्थ यात्रियों ने भी उन्हें कृतज्ञतापूर्वक नमन किया। बस चल पड़ी लखनऊ के लिए। डेढ़ घंटे का रास्ता था। हंसते-बतियाते लखनऊ आ ही गया। लखनऊ के चारबाग स्टेशन पर रात्रि भोजन की व्यवस्था थी। ट्रेन के चलने में दो घंटे का समय था। सभी महिलाएं अपने-अपने सामने की कुर्सियों पर पैर रख कर सुस्ताने लगीं। कमल खुराना और दीपक शायद मार्केट तक घूम कर भी आ गए। खाना खाया, ट्रेन में बैठ गए। अगले दिन घर पहुंचने तक योगेन्द्र ने समिति के लोगों का एक व्हाट्सएप ग्रुप ही बना डाला, जो अब नियमित समाचारों और फोटोज़़ का आदान-प्रदान करता रहता है।

मंजू प्रभा

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