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तीसरी दधीचि दर्शन यात्रा

इस बार महर्षि दधीचि के आश्रम के लिए तीसरी यात्रा 18 दिसम्बर, 2016 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से मिश्रिख रवाना हुई। यात्रा में 35 यात्री शामिल हुए। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर धर्म यात्रा संघ के प्रतिनिधियों ने यात्रियों को तिलक लगा कर और पटके भेंट करके विदाई दी। साथ ही सबको पहचान पत्र भी दिए।

सभी यात्री लखनऊ मेल ट्रेन में बैठ गए, जो अपने निर्धारित समय पर गंतव्य की ओर चल पड़ी। सुबह पौने पांच बजे ट्रेन हरदोई स्टेशन पर पहुंची, जहां श्री छक्कू लाल शास्त्री और श्री विपिन त्रिवेदी ने सभी का स्वागत किया। ठिठुरते जाड़े में यात्रियों को थोड़ी गर्माहट देने के लिए हरदोई स्टेशन पर ही चाय का इंतज़ाम भी इन दोनों बंधुओं ने कर रखा था। स्टेशन के बाहर एक बस सभी यात्रियों का इंतज़ार कर रही थी, जिसका इंतज़ाम श्री छक्कू लाल शास्त्री, श्री सुधीर त्रिवेदी और उनके पुत्र श्री विपिन त्रिवेदी ने किया था। चाय पी कर सभी बस में बैठ गए और नेमिषारण्य की ओर चल पड़े। यात्रा का पहला पड़ाव नेमिषारण्य की काली पीठ धर्मशाला थी।

हरदोई स्टेशन से धर्मशाला की दूरी एक घंटे की थी। धर्मशाला पहुंच कर सभी नित्य कर्मों से निवृत्त हुए, नाश्ता किया और बस द्वारा हनुमानगढ़ी पहुंचे। हनुमानगढ़ी में हनुमान जी की तीन विश्व प्रसिद्ध दक्षिणमुखी प्रतिमाओं में से एक प्रतिमा है। नेमिषारण्य की हनुमानगढ़ी की हनुमान प्रतिमा की एक भिन्न विशिष्टता यह भी है कि यह खड़ी है और इसके दाएं हाथ में गदा व बाएं हाथ में पर्वत है। यहां के महंत पवन दास जी ने सभी यात्रियों से हनुमान जी की पूजा-अर्चना करवाई।

यात्रा का दूसरा चरण मिश्रिख था जहां महर्षि दधीचि का मंदिर है। मंदिर परिसर में ही महर्षि दधीचि का आश्रम भी है। माना जाता है कि यही महर्षि दधीचि का मूल आश्रम है। मंदिर के महंत ने सभी यात्रियों को महर्षि दधीचि की प्रतिमा के दर्शन कराए और उनसे पूजा भी सम्पन्न करवाई। मंदिर परिसर के प्रांगण में ही स्वस्थ सबल भारत गोष्ठी का आयोजन हुआ। गोष्ठी के मुख्य अतिथि महंत कमल नयन दास ने अंग दान व देह दानद विषय का आध्यात्मिक पक्ष स्पष्ट किया। महर्षि दधीचि की पौराणिक कथा के माध्यम से उन्होंने आज के समाज में इस दान की उपयोगिता व औचित्य को बताया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि शरीर के किसी अंग का दान करने या मरणोपरांत देह दान करने के कारण हमारे धार्मिक रीति-रिवाज़ों या संस्कारों में कोई गड़बड़ नहीं होती। वह भगवान राम के विषय पर भी बोले।

दधीचि देह दान समिति के महामंत्री श्री हर्ष मल्होत्रा ने उपस्थित लोगों को समिति के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यह एक गैर सरकारी संस्था है जो 1997 से जन-स्वास्थ के लिए काम कर रही है। समिति का उद्देश्य लोगों को यह प्रेरणा देना है कि वो इस दान की उपयोगिता को समझते हुए आगे आएं और दिस कार्य में सहयोगी हों। समिति अब तक आंखों के 496 जोड़े दान करवा चुकी है और 2019 तक दिल्ली को काॅर्नियल अंधता से मुक्त कराने का संकल्प भी लिया है। समिति की प्रेरणा पर एक महानुभाव ने अपनी हड्डियां भी दान की हैं। उन्होंने बताया कि मस्तिष्क मृत्यु के बाद एक दानी मृत्यु की ओर बढ़ रहे अनेक मरीज़ों का जीवनदाता बन सकता है। समिति ने 2016 में मस्तिष्क मृत चार व्यक्तियों के अंग दान करवाए। यही नहीं समिति रक्त दान और स्टेम सेल दान के लिए भी निरंतर शिविर लगाती है।

उन्होंने बताया, मृत्यु के बाद देह दान चिकित्सा विद्यार्थियों के लिए शरीर-रचना की बारीकियों को व्यवहारिक तौर पर पढ़ने में मदद करता है। इस अध्ययन के बिना कोई भी सफल चिकित्सक नहीं बन सकता। उन्होंने बताया, दुर्भाग्य से देश में चिकित्सा विद्यार्थियों के लिए मृत देहों की बेहद कमी है। उन्होंने जानकारी दी कि समिति अब तक 138 मृत देह दिल्ली के मेडिकल काॅलेजों को दान करवा चुकी है और लोगों को प्रेरित कर इस कमी को शीघ्र दूर करने का संकल्प भी समिति ने लिया है।

उन्होंने महर्षि दधीचि की कथा का उल्लेख करते हुए कहा कि उस युग के अस्त्र-शस्त्र आज के परमाणु अस्त्र-शस्त्रों के समान थे। आसुरी शक्तियां उन्हें छीन कर न ले जाएं इसलिए देवताओं ने उन्हें महर्षि दधीचि के पास सुरक्षित रखा था। एक समय जब महर्षि दधीचि को लगा कि ‘‘मैं भी इन्हें सुरक्षित नहीं रख सकूंगा’’ तो उन्होंने उनका घोल बना कर अपनी अस्थियों में समाहित कर लिया। ब्रह्मा जी को यह मालूम था। इसलिए आवश्यकता पड़ने पर महर्षि दधीचि से ही अस्थियों की याचना की गई।

काली पीठ के महंत भी देह दान पर बोले। उन्होंने कहा कि देह दान पर बात करने और उसे बढ़ावा देने के लिए एक बार फिर यहां सब को मिलना होगा और संतों-महंतों का मेला लगाना होगा। समिति के सचिव श्री अजय भाटिया ने देह दान पर कविता पाठ किया। श्री तुषार साहनी ने मंच संचालन किया और श्री सुधीर राणा एडवोकेट ने बाकी सारी ज़िम्मेदारियां निभाईं।

काली पीठ के महंत ने गोष्ठी के बाद सभी यात्रियों को प्रसाद के रूप में भोजन करने का आमंत्रण दिया। भोजन के बाद यात्री बस से वापस नेमिषारण्य की धर्मशाला पहुंचे, जहां दो घंटे विश्राम किया और फिर चाय पी। तत्पश्चात सभी यात्रियों ने यात्रा का अगला और अंतिम चरण यहां स्थित व्यास गद्दी, चक्रतीर्थ और ललिता देवी मंदिर के दर्शन करके पूरा किया। मान्यता है कि महर्षि वेदव्यास द्वारा वेद, पुराण व श्रीमद् भागवत की रचना नेमिषारण्य में की गई थी। यात्रियों ने यहां प्रतिष्ठित व्यास गद्दी दर्शन किए और व्यास गद्दी के प्रांगण में स्थित लगभग 5000 वर्ष पुराने वट वृक्ष की परिक्रमा की। व्यास गद्दी के सामने ही एक बड़ा हवन कुंड है, जहां प्राचीन काल में ऋषि-मुनि यज्ञ किया करते थे। यहां से दो-ढाई किलोमीटर की दूरी पर चक्रतीर्थ है। ब्रह्मा जी द्वारा छोड़ा गया चक्र यहां आकर गिरा और जल स्रोत फूटा था। इस जल कुंड के किनारे चक्र के आरों की तरह बने हुए हैं जिससे इसका नाम चक्रतीर्थ पड़ा। उस समय इस कुंड के जल का बहाव इतना तेज़ था कि उसे नियमित करने के लिए ललिता देवी प्रकट हुई थीं। इसी लिए चक्रतीर्थ के पास ही ललिता देवी का मंदिर भी बना है।

दधीचि दर्शन यात्रा का तीसरा चरण पूरा होने के बाद सभी यात्री बस में बैठ गए और नई दिल्ली वापसी के लखनऊ के लिए चल पड़े। लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर सभी यात्रियों के रात्रि भोजन का इंतज़ाम था। रात्रि भोजन के बाद सभी लखनऊ मेल ट्रेन में बैठे और अगले दिन सुबह दिल्ली वापस आ गए।

यात्रा के दौरान बार-बार महर्षि दधीचि से संबंधित व समिति के कार्यों से संबंधित होती रही चर्चा ने समिति के कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने वाले इस निश्चय पर पहुंचाया कि यात्रा का हमारा उद्देश्य सफल होता दिखाई दे रहा है। देह दान व अंग दान के विषयों को स्थायित्व देना ही समिति का मुख्य उद्देश्य है और निश्चय ही महर्षि दधीचि आश्रम भी धार्मिक पर्यटन का एक बड़ा केन्द्र बनेगा।