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असम्भव से सम्भव की ओर .....

मोईन अखतर अन्सारी
महासचिव - मरकजी मोमिन कांफ्रेस
अध्यक्ष - अजुमन फरोगे उर्दू (रजि0)
संस्थापक - आवर ट्रस्ट (रजि0)


जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय का छात्र था तब श्री आलोक कुमार जी विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। इस चुनाव में मुझे उन्हें समझने और जानने का अवसर मिला। वह अत्यन्त गम्भीर, सौम्य , सरल स्वभाव के छात्र, साधुत्व जीवन, उच्च विचार, दूरदर्शी, समाज सेवा का दृढसकंल्प लिए हुए थे। मेरा उनका संबंध एक छात्र और छात्र नेता का था। छन छन कर जो उनके विचार हम तक पहुँचते थे वे बड़े ही आश्चर्य चकित करने वाले होते थे। रक्तदान नेत्रदान के उनके विचार कोरी कल्पना लगती थी। मेरे जैसे लोग यही सोचते थे कि कोई क्यूं अपना रक्त या नेत्र किसी को देगा। यह यथार्थ से परे की बात लगती थी। इस जिज्ञासा को जब हमने डाक्टरों के सामने रखा तो हमने अपने आपको भ्रान्तियों में पाया। रक्त दान, नेत्रदान की कल्पना को डाक्टरों ने वैज्ञानिक विचार और मानव कल्याण की ऊचाँइयों को छू लेने वाला कार्य करार दिया। अब हमें अपनी अज्ञानता पर हंसी आई। रक्तदान एवं नेत्रदान की कल्पना को साकार करने की भावना हममें प्रबल होती गई। तब तक यह अभियान आगे बढ़ चुका था और अब देहदान अंगदान की गूंज सुनाई देने लगी थी। अंध विश्वासों एवं भ्रातियों में लिप्त समाज को अंग दान की प्रेरणा देना असम्भव कार्य था। श्री आलोक कुमार जी की प्रेरणा से कई लोग उनके प्रभाव में आ गए और उनका यह अभियान एक आकार लेने लगा। उन्होनेे सबको साथ लेकर ‘‘दधीचि देह दान समिति का निर्माण 1997 में किया और इसके माध्यम से योग्य समर्थ एवं समर्पित कार्यकर्ताओं की एक टीम प्रेरणा स्रोत बन कर अंग दान, देह दान के लिए कार्य कर रही थी। कार्य अभी भी असम्भव लग रहा था क्योंकि समाज की रूढ़िवादिता एवं अंधविश्वासो को तोड़ना भरा पूरा संघर्ष था।


हमारी जिज्ञासा बढ़ रही थी इसलिए इतिहासकारो एवं धर्म के जानकारो से हमने यह जानने की कोशिश की कि किसी धर्म परम्परा अथवा संस्कृति में ऐसा कोई दृष्टान्त है जहां पर अंग दान/ देह दान का उल्लेख हो। हमारे आश्चर्य की सीमा न रही जब हमने यह जाना कि केवल और केवल भारतीय संस्कृति में ऐसा एक उदाहरण है जब महर्षि दधीचि ने बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत के लिए अपनी अस्थियाँ दान कर दी थी। हमें गर्व हुआ कि यह संस्कृति कितनी महान, समृद्ध और वैज्ञानिक है। हम अभी अंगदान देहदान पर ही अटके हुए है और हमसे हजारो लाखो साल पूर्व अस्थिदान की परिकल्पना जीवन्त थी। आश्चर्य है कि हमको हमारी परम्पराओं से अनभिज्ञ रखा गया।


श्रीमान आलोक कुमार जी अपने पिता श्री सुरेन्द्र नाथ का देहावसान होने पर उनका शव जिसे स्वास्थ्य विज्ञान की भाषा के कैडेवर कहा जाता है, को लेकर स्वयं यू.सी.एम.एस. (जी.टी.बी.) जाकर दान कर आए। यह निर्णय विचित्र था, आज भी है, स्थापित मूल्यों के विरोध में आगे आना समर्पण को दर्शाता है। ऐसा उदाहरण उन्होने प्रस्तुत किया। इन्हीं मूल्यों को लेकर जनता जनार्दन के समक्ष अंगदान के लिए उनको तैयार करना दूसरी ओर अस्पतालों, प्रशासन एवं व्यवस्था को उसे स्वीकार करने का तारतम्य बैठाना क्योंकि हमारी व्यवस्था में उदासीनता थी, सामंजस्य नहीं था। जागरूकता दोनो ओर बढ़ी तो कार्य भी आगे बढ़ा। प्रशासन ने भी समिति की सेवाओं की सराहना की अंगदान को स्वीकार करने को सुगम बनाया गया। सामंजस्य स्थापित हुआ। ग्रीन कोरिडोर बनाया जाना प्रशासन की तत्परता को दर्शाता है। समिति अंग दाताओं को प्रतिष्ठा भी प्रदान करती है कि यह उदाहरण स्वरूप अन्य लोगो के लिए प्रेरणादायक होता है। देह दानियों का उत्सव आयोजित करना समिति का बड़ा काम है। जहां दानियों से फार्म आदि भरवाए जाते हैं, औपचारिकताएँ पूरी की जाती हैं । ई जरनल के माघ्यम से प्रेरणा को आगे बढ़ाने का काम किया जाता है।

‘‘दधीचि देह दान समिति’’ का बड़ा योगदान यह है कि अब बड़े छोटे प्राईवेट अस्पतालो में भी मुख्य रूप से बड़े -बड़े बैनर एवं पोस्टर अंग दान के लिए प्रेरित करते नजर आ जाते हैं। समिति अपने कठोर आरम्भिक दिनो से निकल कर कुछ ऊपर बीस वर्ष पूरे कर अपना फैलाव कर रही है। अब समिति के बराबर आकार की क्षेत्रीय समितिया दिल्ली के सात जिलो में संगठित कर दी गई है। यह समितियां बड़ी ही लगनशीलता एवं तन्मयता से इस महान कार्य को आन्दोलन का स्वरूप देने में प्रयासरत है। दिल्ली, एन.सी.आर. में गाजियाबाद, फरीदाबाद में भी समितिया समर्थ रूप से कार्य कर रही है। अब तो उ0 प्र0, राजस्थान, बिहार में भी पंख पसार लिए हैं अब उन्होने अपने लक्ष्य भी निर्धारित कर लिए है उदाहरण स्वरूप 2019 तक दिल्ली को कार्नियल अंधता से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। वह इस में सफल भी होगें क्याेंकि सक्षम नेतृत्व, कामन सरोकार, जुझारू संघर्षशील टीम, मानव कल्याण के लिए समर्पित कार्यकर्ता, प्रशासन से सौहार्दपूर्ण सामंजस्य की कला, देश प्रेम, समाज सेवा की भावना, स्वस्थ एवं सबल भारत बनाने की चाहत ही असम्भव को संभव बनाने में सफल होगें।