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वेबीनार- "राष्ट्र का उत्कर्ष हमारा उत्कर्ष है"

वर्तमान में कोरोना संकट की घड़ी में सारा देश लाॅक डाउन की स्थिति से उबरने का उपाय खोज रहा है। देश में कोरोना वायरस से न केवल स्वास्थ्य संकट अपितु सामाजिक एवं आर्थिक संकट की एक भयावह स्थिति बन गई है। अब सवाल यह है कि कैसे हम अपने देश को पुनः स्वस्थ एवं स्वावलम्बी बनाने का प्रयास करें।

दधीचि देह दान समिति ने इस ज़रूरी विषय पर 31.5.2020 को वेबीनार का आयोजन किया। वर्तमान परिस्थितियों में पूर्णतः प्रासंगिक विषय था ‘‘चलो बनाएं स्वस्थ सबल आत्मनिर्भर भारत’’। कार्यक्रम में दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। दधीचि देह दान समिति के संस्थापक-संरक्षक श्री आलोक कुमार ने वर्तमान स्थिति पर अपने प्रेरक विचार रखे।

वेबीनार की शुरुआत समिति की उपाध्यक्ष श्रीमती मंजूप्रभा द्वारा, सौ वर्ष तक स्वस्थ रह कर जीने की वैदिक प्रार्थना से हुई। इसके बाद समिति के उपाध्यक्ष श्री हर्ष मल्होत्रा ने सभी का स्वागत करते हुए समिति का परिचय दिया। समिति के कार्यक्षेत्र, कार्य शैली एवं कार्य प्रणाली से अवगत कराया। तत्पश्चात समिति के संस्थापक-अध्यक्ष-संरक्षक तथा वर्तमान में विश्व हिन्दू परिषद के कार्याध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने अपने उद्बोधन में वेबीनार का विषय रखा। उन्होंने बताया कि आदरणीय नानाजी देशमुख की प्रेरणा से देह-अंग दान का काम शुरू हुआ।

श्री आलोक कुमार ने कहा कि ‘‘हम जीवन भर इस शरीर से समाज की सेवा करते हैं। अपने मन को, बुद्धि को, इन्द्रियों को समाज के और देश के हित में लगाते हैं। हमारी आत्मा को यह जो उपकरण यानी शरीर मिला है उसे पुण्य के कार्यों में लगाया जाए इसका प्रयत्न करते हैं। मृत्यु के पश्चात्, चिकित्सा शास्त्र के विद्यार्थियों की पढ़ाई के लिए अपनी देह का दान करने का संकल्प लेते हैं।’’

उन्होंने बताया कि ‘‘चिकित्सा जगत में नए अनुसंधान हेतु एवं ज़रूरतमन्दों को जीवन देने के लिए समिति के माध्यम से अब तक दिल्ली-एनसीआर के कई पुण्यवान लोगों ने देह-अंग दान किए हैं। सात सौ से अधिक लोगों ने नेत्र दान किए और बहुत से अन्य लोगों ने हार्ट, किडनी, लिवर, त्वचा और हड्डियां दान की हैं। लगभग 12000 लोग, मृत्यु के बाद, देह-अंग दान का संकल्प-पत्र भर चुके हैं।’’

श्री आलोक कुमार ने कहा कि ‘‘इस काम को करने के पीछे हमारी मूल पे्ररणा है ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः’। ‘निरामय’ शब्द स्वस्थ समाज से सम्बंधित है। यही स्वस्थ समाज हमारी समिति का मूल मंत्र भी है।’’ वेबीनार के विषय पर बोलते हुए उन्होंने आगे कहा कि ‘‘आज समाज में एक गम्भीर संकट आया है। कोरोना नाम के एक महाराक्षस ने अपनी अनन्त भुजाओं से पूरे विश्व को जकड़ लिया है। भारत भी इसकी जकड़ में है। देश में सब काम-धन्धे बंद करने पड़े। सबको घर के अंदर रहना पड़ा।’’

उन्होंने कहा ‘‘ऐसे काम नहीं चल सकता। कोरोना जल्दी जाने वाला नहीं है। कोरोना भी रहेगा, हम भी रहेंगे। कोरोना के संकट को अवसर बनाएंगे। देश में निर्मित माल ही बेचेंगे और खरीदेंगे तथा यह भी सुनिश्चित करेंगे जो भी देश में बनेगा वह सर्वश्रेष्ठ होगा।’’

इसके बाद देह-अंग दान विषय के आध्यात्मिक पक्ष पर श्री आलोक कुमार ने दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा से मार्ग दर्शन करने का अनुरोध किया।

दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा ने अपना उद्बोधन दधीचि देह दान समिति के कार्यों की सराहना से शुरू किया। उन्होंने कहा कि समिति का कार्य एक महायज्ञ है और अपनी (भारत की) प्राचीन परम्परा को जीवंत करता है। मानवता की भलाई के लिए देह की आसक्ति को तोड़ कर देह-अंग दान का संकल्प व्यक्ति को महामानव बना देता है।’’ उन्होंने गूढ़ शब्दों में आगे कहा, ‘‘क्या तन मांगता रे आखिर माटी में मिल जाना है। माटी का बुत बनाया जामें भंवर समाना और माटी ढूंढे माटी का सिरहाना और माटी का ही सारा जगत है, माटी में ही मिल जाना।’’ उन्होंने प्रश्न किया तो फिर इस मिट्टी से कैसा मोह? आसक्ति की अन्तिम डोर अगर तोड़नी है तो अपनी देह का मोह छोड़ो, यही जड़ ग्रंथी है, यही (मोह) जड़ है विकारों का, यही समस्त प्रपंच को हमारे दिल में पैदा करता है। देह की आसक्ति बहुत बड़ी जिजीविषा होती है।’’

वेबीनार के विषय के चयन की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सराहना करते हुए उन्होंने प्रश्न उठाए कि ‘‘कोरोना महामारी के संकट से जब हम गुज़र रहे हैं, बाज़ार बन्द हैं और घरों में सब कैद हैं, तो, ऐसे समय में भारत किसी का मोहताज न रहे यह कैसे होगा? हम सबल कैसे बनें, हम स्वस्थ कैसे बनें, हम आत्म निर्भर कैसे बनें?

न्होंने कहा, ‘‘भारत का जो प्राचीन चिन्तन है वही इन प्रश्नों का उत्तर है और समस्त विश्व का मार्गदर्शक है। हमारा प्राचीन चिन्तन है भोजन की शुचिता, इन्द्रियों और मन का अनुशासन, बुद्धि की प्रखरता और काया की सक्रियता। बहुत सुन्दर तरीके से भारत के ऋषि-मुनियों ने जीवन पद्धति विरासत में दी है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘तन से सक्रिय रहो, मन से अचल रहो, बुद्धि से निर्मल रहो, इन्द्रियों के घोड़ों की लगाम अपने हाथ में रखो। कितना सुन्दर सूत्र है यह।’’

देश आत्म निर्भर बने - इस विषय पर उन्होंने कहा कि, ‘‘हमें अपनी कमज़ोरी से पार पाना होगा। हमें अपने देश में बनी चीज़ों को खरीदना होगा। विश्व में इस समय आर्थिक युद्ध चल रहा है। चीन ने सारी दुनिया को घर बैठा दिया है। क्या हम ऐसे पापियों का साथ देंगे उनकी वस्तुओं का उपयोग करके? अगर हम आत्म निर्भर बनना चाहते हैं तो सबसे पहले हमारे हृदय में देशभक्ति होनी चाहिए और भावना होनी चाहिए कि मेरे देश का अगर कोई बुरा करता है तो वो मेरा मित्र नहीं हो सकता।’’

उन्होंने कहा, ‘‘संकट के इस काल में थोड़े में गुज़ारा करना सीखने के साथ हमें स्वयं भी अच्छे स्तर का निर्माण करना चाहिए। वो आत्म निर्भर हो जाते हैं जो स्वाभिमानी होते हैं, जिनको राष्ट्र का अभिमान होता है वो कभी अपने देश को नीचे गिरने नहीं देते। इसलिए सौ बीमारियों की एक दवा है राष्ट्र-अभिमान, देश का स्वाभिमान। राष्ट्र का उत्कर्ष मेरा उत्कर्ष है और राष्ट्र का अपकर्ष मेरा अपकर्ष है। मेरी उन्नति-अवनति मेरी व्यक्तिगत नहीं है। मेरे राष्ट्र की उन्नति मेरी उन्नति है। यही बोध हमें सिद्धांतों में आचरण देगा व देश को आत्मनिर्भर बनाएगा।’’

अंत में समिति के महामंत्री श्री कमल खुराना ने दीदी मां का आभार प्रकट किया एवं वेबीनार में शामिल सभी महानुभावों का धन्यवाद किया।