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साधारण परिवार का ‘असाधारण’ दान

एक बच्ची सहित चार को दिया नया जीवन और एक को दी आंख की रोशनी

उस परिवार को गरीब तो नहीं कह सकते, निम्न मध्य वर्ग का अवश्य मान सकते हैं। उत्तर दिल्ली के एक इलाके शकूरपुर में संकरी सी गली में तीसरी मंज़िल पर एक कमरे के सेट में रहने वाला यह साधारण परिवार पहली नज़र में बिल्कुल ऐसा नहीं लगा कि उसने (परिवार ने) वह ‘असाधारण’ काम किया जो उसकी जैसी दर्दनाक परिस्थिति से गुज़रता कोई जागरूक परिवार भी नहीं करता या कर सकता। यह ‘असाधारण’ काम इस दास परिवार के बेटे रवि दास की देह के अंदरूनी अंगों के दान का था, जिसकी एक सड़क दुघर्टना के बाद मस्तिष्क मृत्यु (ब्रेन डेथ) हो गई थी।

सड़क दुर्घटना में गंभीर चोटें खाकर रवि 4 दिन जीवन-मृत्यु से जूझता रहा और अंत में मृत्यु के आगे हार गया। बीस वर्षीय इस नौजवान को महाराजा अग्रसेन अस्पताल में मस्तिष्क मृत (ब्रेन डेड) घोषित कर दिया गया। साधारण जीवन जीने वाले माता-पिता को (रवि के) अंग दान के लिए समझाना एक बड़ा काम था। महाराजा अग्रसेन अस्पताल के ट्रस्टी एवं दधीचि देह दान समिति के सचिव श्री प्रमोद अग्रवाल ने रवि के बड़े भाई से अंग दान करवाने का अनुरोध किया। इस कार्य को करना भी जल्दी था क्योंकि अंगों को निकालना और उनका प्रत्यारोपण एक निश्चित समय सीमा में ही संभव है। समिति के सचिव श्री प्रमोद ने दुःख की उस घड़ी में रवि के माता-पिता को सांत्वना दी और अंग दान के लिए अनुरोध भी किया। दास परिवार के पारिवारिक मित्र श्री राहुल वैद रवि के साथ हुई दुर्घटना के पहले दिन से ही बड़े भाई प्रकाश के साथ खडे़ थे। उन्होंने धैर्य और समझदारी से प्रकाश को रवि के अंग दान के लिए प्रेरित किया, और वह सफल हुए। प्रकाश को जब अंग दान का महत्व समझ में आ गया तो उन्होंने अपने माता-पिता को समझाया, ‘‘चले गए पुत्र की देह तो अब जीवित नहीं हो सकती, लेकिन उसके दान किए गए अंगों के माध्यम से हम उसे कई रूपों में महसूस कर सकते हैं। और, शायद इस तरह हम उसके अचानक चले जाने के सदमे से खुद को संभाल भी सकते हैं।’’

माता-पिता ने रवि के अंगों के दान की स्वीकृति दे दी। उनकी स्वीकृति मिलने के बाद दधीचि देह दान समिति सक्रिय हो गई। सबसे बड़ी और पहली बाधा पुलिस से एनओसी मिलने की सामने आई। समिति के अध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने तत्कालीन पुलिस कमिश्नर श्री बी.एस. बस्सी से फोन पर सम्पर्क किया और फिर सब कुछ आसान हो गया। एनओसी मिल गई। यही नहीं पुलिस की मदद से महाराजा अग्रसेन अस्पताल से लेकर एम्स तक ग्रीन काॅरिडोर बनाया गया और रवि की मृत देह को फटाफट एम्स लाया गया। रवि के हृदय को एम्स में 13 साल की एक बच्ची को प्रत्यारोपित किया गया। उसका एक गुर्दा एम्स में ही एक मरीज़ में प्रत्यारोपित किया गया जबकि दूसरा गुर्दा महाराजा अग्रसेन अस्पताल में एक अन्य मरीज़ को लगाया गया। रवि का यकृत वसंत कुंज स्थित आईएलबीएस अस्पताल में प्रतीक्षारत एक मरीज़ में प्रत्यारोपित हुआ। यही नहीं, रवि की एक आंख के प्रत्यारोपण से पांचवां मरीज़ दुनिया देख पाने में सक्षम हुआ। इस तरह पांच विभिन्न देहों के रूप में रवि सजीव हो गया।