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साक्षात्कार : तीन से पांच वर्ष में भारत को अंधतामुक्त करने का संकल्प !

अंधता के कई कारण होते हैं। जैसे कॉर्निया या लेंस या रेटिना अथवा दृष्टि स्नायु (नर्व) का खराब हो जाना। इसमें कॉर्नियल अंधता को सिर्फ जीवित कॉर्नियल प्रत्यारोपण से ठीक किया जा सकता है। इस प्रत्यारोपण विधि को ‘केरेटोप्लास्टी’ कहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि कॉर्नियल अंधता को सिर्फ नेत्र दान दूर कर सकता है। कॉनियल अंधता के मुख्य कारण हैं: चोट लगना, संक्रमण, विटामिन ए की कमी।
कॉर्नियल अंधता को दूर करने के लिए देश में जो प्रमुख संस्था कार्यरत है उसका नाम है ‘समदृष्टि क्षमता विकास एवं अनुसंधान मंडल’, संक्षेप में सक्षम। इसके अखिल भारतीय अध्यक्ष हैं डॉ. दयाल सिंह पंवार। डॉ. दयाल श्री लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ के व्याकरण विभाग में सहायक आचार्य (असिस्टेंट प्रोफेसर) हैं। जन्म से स्वयं दृष्टि बाधित हैं, पर इस बाधा को समाज से दूर करने के लिए कृतसंकल्प प्रयत्न कर रहे हैं।

सक्षम को अस्तित्व में आए हुए मात्र आठ साल हुए हैं लेकिन इसने कॉर्नियल अंधता दूर करने की दिशा में काफी तेज़ी से कदम बढ़ाए हैं। योजना बना ली है, रोड मैप की तैयारी है। दधीचि देह दान समिति के उपाध्यक्ष श्री महेश पंत ने सक्षम के बारे में पूरी जानकारी लेने के लिए डॉ. दयाल से बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के कुछ अंश:-

महेश पंत: सक्षम के बारे में कुछ बताएं।

डॉ. दयाल: सक्षम एक अखिल भारतीय संगठन है। यह राष्ट्रीय सोच रखता है और अंधता निवारण से जुड़ा है। इसका उद्देश्य है कि जो दृष्टि खो चुके हैं उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था करना और उनके पुनर्वास में सहायता करना। विशेष कार्य है अंधता को रोकने, दूर करने का प्रयास। इसकी स्थापना 20 जून, 2008 को नागपुर में हुई थी और अपनी शैशवावस्था में ही 37 प्रांतों में सक्षम की ईकाइयां गठित हो चुकी हैं। देश भर में सक्रिय काम चल रहा है।

महेश पंत: नेत्र दान सक्षम का क्या अलग कार्य है? क्या सक्षम का तीन से पांच साल में भारत को अंधता मुक्त बनाने जैसा कोई संकल्प है? कैसे इसे पूरा करेंगे?

डॉ. दयाल: नेत्र दान सक्षम का विशेष कार्य है। इस पर पूरा ज़ोर इसलिए है कि दृष्टि बाधा (अंधता) के कारणों को रोका जा सके। हाल ही में हुए कन्याकुमारी अधिवेशन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी ने कहा था कि समस्या केन्द्रित परिणामदायी योजना तैयार की जाए। इसलिए सोचा गया कि जो कार्य किया जा सकता है उसको सुनिश्चित करें, एक रोड मैप तैयार करें और नेत्र दान के माध्यम से कॉर्नियल अंधता से भारत को मुक्त करके दिखाएं। इसीलिए कन्याकुमारी अधिवेशन में तीन से पांच वर्ष के बीच भारत को कॉर्नियल अंधता से मुक्त करने के संकल्प लिया। यह बहुत बड़ा संकल्प है और इसे पूरा करने के लिए समाज तथा सरकार की भागीदारी भी आवश्यक है।

कन्याकुमारी अधिवेशन में लिए गए कुछ निर्णयों के अनुसार यह छह नगरों जैसे नागपुर, जबलपुर, दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद में पायलट (वृहद्) में स्टडी (अध्ययन) की जानी थी, जिसे दिसम्बर तक पूरा करना था। यह पूरा कर लिया है। इस अध्ययन के दौरान हुए अनुभवों के आधार पर एक रोड मैप भी तैयार किया गया है। इसके अनुसार पहले वर्ष में 100 ज़िलों में काम किया जाएगा। कॉर्नियल अंधता से पीड़ित लोगों की खोज की जाएगी। इन ज़िलों में कितने नेत्र दान केन्द्र हैं इसका आंकड़ा तैयार किया जाएगा।

इसकी शुरुआत 5 मार्च, 2016 को दिल्ली के संसद मार्ग पर स्थित एनडीएमसी के कन्वेंशन हॉल में होने वाली वर्कशॉप (कार्यशाला) है। इस वर्कशॉप में आगे की रणनीति तैयार की जाएगी।

महेश पंत: इस वर्कशॉप में कितने लोग आ रहे हैं? जो ढांचा तैयार कर चुके हैं उसमें क्या सुधार कर सकते हैं? क्या सरकार के साथ समन्वय की भी कोई बात है?

डॉ. दयाल: कार्यशाला में 500 लोगों के शामिल होने की संभावना है। इनमें ज़मीनी कार्यकर्ता, डॉक्टर्स और विशषज्ञ भी शामिल हैं। कार्यशाला में तीन से पांच वर्ष के बीच भारत को कॉर्नियल अंधता मुक्त करने के लिए जो उपाय सोचे गए हैं उन पर परामर्श किया जाएगा। साथ ही इस पर भी चर्चा की जाएगी कि कैसे इस विषय पर सरकार और समाज का सहयोग लिया जाए। इस तरह इस कार्यशाला से प्रशिक्षण मिल जाएगा और डॉक्टर्स, समाज के विशेष लोग व सरकार भी सक्षम का साथ देने के लिए मानसिक तौर पर तैयार हो जाएंगे।

इसे पूरा करने के लिए सरकार से समन्वय महत्वपूर्ण है। इसीलिए इस कार्यशाला में स्वास्थ मंत्री श्री जे.पी. नड्डा भी आमंत्रित हैं। एक बड़ी कठिनाई यह है कि देश में लगभग साढ़े तीन सौ (नेत्र प्रत्यारोपण) सर्जन हैं जबकि आवश्यकता 2000 की है। इन्फ्रास्ट्रक्चर (मूलभूत संरचना) के लिए सरकार की ज़रूरत पड़ेगी। आई बैंक एसोसिएशन आॅफ इंडिया के मुताबिक देश में 160 आई बैंक हैं और इनमें भी कुछ काम न करने की स्थिति में हैं। ज़रूरतमंद पीड़ितों की संख्या ज़्यादा है और प्रतीक्षा सूची बहुत लम्बी है। आपूर्ति और मांग के बीच इतने बड़े अंतराल को दूर करने के लिए काम करना होगा। सक्षम के पास अपने तीन आई बैंक है। एक नागपुर में, एक करनाल में और एक अम्बाला में।

महेश पंत: दिल्ली में भी आई बैंक खोलने का विचार है?

डॉ. दयाल: जी हां। लेकिन इसके लिए युद्ध स्तर पर काम करना होगा। दिल्ली में फिलहाल सक्षम, सम्पर्क करने वालों को एम्स और गुरुनानक आई हॉस्पिटल भेज देता है, लेकिन सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों, पहाड़ी इलाकों में काम करने की ज़्यादा ज़रूरत है, क्योंकि इन क्षेत्रों में नेत्र दान के लिए इच्छुक लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं है।

महेश पंत: ऐसे कौन से क्षेत्र हैं जहां नेत्र दान के प्रति काफी जागरूकता है और कौन से ऐसे जहां नेत्र दान कम हो रहे हैं? वहां अधिक जागरूकता या इन्फ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत है?

डॉ. दयाल: जागरूक क्षेत्र हैं तमिलनाडु, करनाल, नागपुर और कुछ-कुछ दिल्ली। जहां जागरूकता की ज़रूरत है वह हैं उत्तर भारत और पूर्वोत्तर क्षेत्र। यहां आई डोनेशन सेंटर (नेत्र दान केन्द्र) नहीं हैं। दूसरी वजह है कुछ प्रचलित धारणाए।

इन्फ्रास्ट्रक्चर बहुत ज़रूरी है। मांग और आपूर्ति गहरी खाई तो है ही, यह भी प्रयत्न करना होगा कि दान हुए नेत्रों का अधिकतम प्रत्यारोपण हो सके।

महेश पंत: नेत्र दान की स्वीकार्यता के लिए सक्षम की क्या तैयारी है?

डॉ. दयाल: नेत्र दान की स्वीकार्यता के लिए अपनी स्थापना से अब तक सक्षम करीब सात पर्व मना चुका है। सितम्बर का आस-पास नेत्र दान जन-जागरण पखवाड़ा भी मनाया जाता है। इसके अलावा जिन स्थानों पर सक्षम के अधिवेशन होते है वहां अधिवेशन के पहले या आखिरी दिन, आस-पास के मुख्य क्षेत्रों में लगभग पांच किलोमीटर की रैली निकाली जाती है। रैली में ‘जीते जीते रक्त दान, जाते जाते नेत्र दान’ जैसे नारे लगाए जाते हैं, जो लोगों का ध्यान खींचते हैं, उनमें उत्सुकता जगाते हैं और उन्हें नेत्र दान के लिए तैयार करते हैं। धार्मिक त्योहारों, मंदिरों में सक्षम के शिविर, स्टॉल लगाए जाते हैं।

महेश पंत: दधीचि देह दान समिति का, जो देह-अंग दान में सक्रिय है, सक्षम से कैसा तालमेल है?

डॉ. दयाल: दधीचि देह दान समिति विशेष कार्य कर रही है, और ऐसा लगता है कि सक्षम का भी कार्य उसके माध्यम से आगे बढ़ रहा है। जब संघ (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) ने नेत्र दान का दायित्व लिया था तब इसके लिए दो संगठनों को नामांकित किया - सक्षम और दधीचि देह दान समिति। हमारा मानना है दोनों एक ही उद्देश्य को पूरा कर रहे हैं।