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समिति कार्यशाला : प्रेस विज्ञप्ति, फोटोग्राफी और दान संचालन

प्रेस विज्ञप्ति/रिपोर्ट घटना वाले दिन ही तैयार करके समाचार पत्रों में भेजनी होती है। इसे शाम साढ़े पांच बजे से पहले समाचार पत्रों को मिल जाना चाहिए, ताकि उसे पत्र में स्थान मिल सके। मृत्यु के बाद दधीचि देह दान समिति देह/अंग में मदद करती है, वेबजीन के नवीन अंक में श्रद्धांजलि स्तम्भ में व्यक्ति की मृत्यु और उसके परिवार द्वारा मृतक की देह या अंग दान बारे में प्रकाशित करती है। पूरी जानकारी को कैसे कलमबद्ध किया जाए, समय पर समाचार पत्रों को भेज दिया जाए - इसी पर समिति ने 24 फरवरी, 2017 को एक कार्यशाला आयोजित की। स्थान था गांधी दर्शन, राजघाट, नई दिल्ली का आइंस्टीन हाॅल। समय था सबेरे 10 बजे से लेकर शाम के 4 बजे तक। कार्यशाला का शीर्षक था ’’वर्कशाॅाप आॅन प्रेस रिलीज़, फोटोग्राफी एंड एक्ज़ीक्यूशन आॅफ डोनेशन्स’’ (प्रेस विज्ञप्ति, फोटोग्राफी और दान संचालन कार्यशाला)।

कार्यशाला के शुरू में समिति के दक्षिण दिल्ली के संयोजक श्री कमल खुराना ने इसके मकसद को संक्षेप में स्पष्ट किया। उनके बाद समिति के अध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने बताया कि मृत्यु के बाद मृतक के बारे में जानकारियां हासिल करना एक कला है। मृत्यु के समय से लेकर तेरहवीं तक मृतक के बारे में परिवारजन, मित्रगण, पड़ोसी विस्तार से बताते हैं। बस, पूछने की कला आनी चाहिए और इस पर ध्यान रखने की ज़रूरत है कि उस वातावरण में कौन बात कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि हर प्रेस विज्ञप्ति में नवीनता होनी चाहिए। जैसे किसी विशिष्ट व्यक्ति, धार्मिक संस्था के वरिष्ठ की उपस्थिति, उनकी टिप्पणी या मृतक का अपने जीवनकाल किया गया विशेष कार्य। कार्यशाला के तीन सत्र में थी और तीनों सत्रों के तीन मेंटर थे। पहला सत्र प्रेस विज्ञप्ति/रिपोर्ट लेखन और उसी दिन उसे समाचार पत्रों को भेजने पर था। इस सत्र के मेंटर थे वरिष्ठ पत्रकार श्री अरुण आनंद। श्री अरुण का हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में पत्रकारिता का लम्बा अनुभव है और वह कई जाने-माने समाचार पत्रों में काम कर चुके हैं।

उन्होंने बताया ’-

  • प्रेस विज्ञप्ति/रिपोर्ट अब भी प्रभावी है। समाचार पत्रों को यह रेडीमेड दी जानी चाहिए और 550 से लेकर 650 शब्दों से ज़्यादा की न हो।
  • बैक ग्राउंड नोट के रूप में अलग से विवरण संलग्न किया जा सकता है।
  • प्रेस विज्ञप्ति का मतलब है खबर (न्यूज़ स्टोरी), जिसमें चार सवालों के जवाब हों। चार सवाल हैं क्या, कहां, कब और कैसे? इन्हें अंग्रेज़ी में संक्षेप में फोर डब्ल्यू (व्हाॅट, व्हेयर, व्हेन, हाऊ) कहते हैं।
  • प्रेस विज्ञप्ति में खबर और मानवीय रुचि के नज़रिए (न्यूज़ एंगल एंड ह्यूमैन इन्टरेस्ट एंगल) हों।
  • प्रेस विज्ञप्ति उलटे पिरामिड के रूप में हो, अर्थात् प्रमुख बात सबसे पहले पैरे में (जिसे इन्ट्रो भी कहते हैं) लिखें।
  • मुख्य शीर्षक आठ शब्दों से ज़्यादा न हो। शीर्षक से बात स्पष्ट नहीं हो पा रही हो तो उप शीर्षक दें।
  • वाक्य विन्यास सरल हो। छोटे-छोटे वाक्य हों। विशेषणों का प्रयोग बिल्कुल न हो। यानी खबर स्वयं घटना को उजागर करे। इसके लिए देह/अंग दान पर निकट संबंधी के मनोभावों को उन्हीं के शब्दों में दें, जिसमें दान ’क्यों’ किया गया इसका उत्तर अवश्य हो।
  • देह/अंग दान पर डाॅक्टर और समिति के प्रतिनिधि के पक्ष भी उन्हीं के शब्दों में दें।
  • मृत्यु पर शामिल होने वाले क्षेत्रीय नेता, धार्मिक संस्था के प्रतिनिधि, राजनीतिक संस्था के प्रतिनिधि की अभिव्यक्तियां उन्हीं के शब्दों में दें।
  • घटना से संबंधित कैमरा चित्र संलग्न करे। चित्र की संख्या दो से ज़्यादा न हो।
  • एक या दो पैराग्राफ़ में समिति के कार्यों और आंकड़ों की जानकारी दें।
  • अधिक जानकारी के लिए संबंधित व्यक्ति का नाम, पता व फोन नम्बर दें।
  • प्रेस विज्ञप्ति उसी दिन शाम के साढ़े पांच बजे से पहले समाचार पत्रों को भेज दें। विज्ञप्ति भेजने से पहले संबंधित रिपोर्टर को अवश्य सूचना दे दें।
  • सत्र अंत में श्री अरुण ने दो केस दिए जिनमें से किसी भी एक पर खबर/रिपोर्ट लिखने को कहा। रिपोर्ट लिखे जाने के बाद श्री अरुण और एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार अतुल गंगवार ने हर व्यक्ति को उसकी रिपोर्ट में छूट गए बिन्दुओं को बताया।
  • प्रेस विज्ञप्ति/खबर/रिपोर्ट श्री आलोक कुमार या श्री राजीव गोयल को भेजें।

दूसरा सत्र फोटोग्राफ़ी पर था। इसके मेंटर थे फोटो पत्रकार श्री शैलेन्द्र पाण्डे। श्री शैलेन्द्र कई जाने-माने समाचार पत्रों में नेशनल फोटो एडिटर के रूप में काम कर चुके हैं। मूल विषय पर जाने से पहले उन्होंने स्वयं लिए गए कैमरा चित्रों को दिखाया। जैसे विधान सभा, बापू की मूर्ति, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की प्रतीक्षा करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुम्बई पर हुआ आतंकवादी हमला, नेपाल में भूकम्प से हुई तबाही, केदारनाथ में आई बाढ़ से तबाही, सूखे की विकरालता को दर्शाती पैरों की चटकी त्वचा, 6 दिसम्बर को हुई अमानवीय घटना के विरोध में जंतर-मंतर पर हुए पहले दिन का जनप्रदर्शन इत्यादि। सभी चित्र खबर का सम्पूर्ण विवरण थे।

श्री शैलेन्द्र ने बताया कि फोटोग्राफ़ी के आधार हैं:-

  • कोण (एंगल) और प्रकाश (लाइट)।
  • फोटो के लिए विशिष्ट व्यक्ति की उपस्थिति व आयोजन महत्वपूर्ण हैं।
  • फोटो खींचने के लिए फ्लेश लाइट का इस्तेमाल न करें। यह फोटो को मार (किल कर) देती है।
  • फोटो ऐसे कोण से ली जाए कि शव तो दिखाई दे लेकिन प्रमुखता किसी अन्य पर हो। जैसे किसी विशिष्ट व्यक्ति की उपस्थिति, आस-पास मौज़ूद कोई स्मारक, लोगों की छाया इत्यादि। इसके लिए कोण तय करते समय उपस्थित लोगों को दाएं-बाएं हटने के लिए कहने में संकोच न करें। इसके बाद शव को एम्बुलेन्स में रखे जाने तक मोबाइल से फोटो खींचने का अभ्यास कराया। उन्होंने प्रत्येक कार्यकर्ता द्वारा ले गई फोटो की कमियों को भी उजागर किया।

तीसरे सत्र में समिति के महासचिव व पूर्वी दिल्ली नगर निगम के मेयर श्री हर्ष मल्होत्रा भी मंच पर श्री आलोक के साथ उपस्थित थे। इस सत्र में समिति के उपाध्यक्ष व मेंटर श्री सुधीर गुप्ता ने अंग/देह दान की प्रक्रिया को विस्तार से बताया। श्री सुधीर पिछले लगभग 20 साल से इस कार्य को अकेले सम्भाल रहे थे। अब यह ज़िम्मेदारी दिल्ली के सात क्षेत्रों के संयोजकों में बांट दी गई है। श्री सुधीर ने बताया:-

  • मृत्यु के बाद जब किसी दानी के परिवार जन का फोन समिति के प्रतिनिधि के पास आता है तब उसी समय वह मृतक का नाम, आयु, मृत्यु का समय, मृत्यु का कारण, पता नोट कर लें।
  • मृत्यु के बाद चार से छह घंटे के अंदर नेत्रों का दान किया जाना आवश्यक है। इसके लिए पहले दिल्ली के गुरु नानक आई सेंटर, राजेन्द्र प्रसाद आई सेंटर और सुन्दर लाल आई सेंटर में संबंधित अधिकारी को फोन किया जाता है। अंतिम विकल्प है वेणु गोपाल अस्पताल। इन अस्पतालों में तकनीकी टीम दो शिफ्टों में 24 घंटे ड्यूटी पर रहती है।
  • तकनीकी टीम के अस्पताल से निकलते ही परिवार को इसकी पुष्टि की जाती है।
  • टीम को नेत्र निकालने में मात्र 12 से 15 मिनट का समय लगता है।
  • नेत्र दान 75 वर्ष आयु तक किया जा सकता है। कई बार स्वस्थ आंखें 98 वर्ष की आयु में भी ले ली जाती हैं। दान किए गए नेत्र प्रत्यारोपण के अलावा अनुसंधान में भी काम आते हैं।
  • मोतियाबिन्द (कैटरेक्ट) का आॅप्रेशन होने के बाद भी आंखे ली जाती हैं, क्यों इसमें आंखों का पर्दा पूरी तरह खराब नहीं होता।
  • देह दान के लिए दिल्ली के आर्मी अस्पताल सहित सभी सरकारी मेडिकल काॅलेजों को एनाॅटमी विभाग के प्रमुख या ड्यूटी पर मौज़ूद जूनियर डाॅक्टर को फोन किया जाता है।
  • देह और अंग दान के लिए जिन अस्पतालों से सम्पर्क करना है उनके व संयोजकों के नाम और नम्बर इस प्रकार हैं:-

    गुरुनानक आई हाॅस्पिटल:
    एचओडी डाॅ. ऋतु अरोड़ा, फोन 9810371022, लैंड लाइन नं. 011-232341612/23234622/23235145

    आर.पी. इन्स्टीट्यूट (आई सेंटर, एम्स): लैंड लाइन नं. 011-26589461/26588500/26498566

    संयोजक (दधीचि देह दान समिति): श्री कमलेश

    देह दान: संयोजक (दधीचि देह दान समिति): श्री राजीव मैखुरी, मो. नं. 9868563105

    लेडी हार्डिंग मेडिकल काॅलेज:
    डाॅ. शीतल जोशी, मो.नं. 9711933704 डाॅ. सोहिन्दर कौर, एचओडी, मो.नं. 9899503336

    भाई वर्धमान मेडिकल काॅलेज (सफ़दरजंग हाॅस्पिटल): डाॅ. नागेन्द्र, मो.नं. 9810760157

    आर्मी मेडिकल काॅलेज: कर्नल अहूजा, मो.नं. 9823805844

    ईएसआई: डाॅ. सारिका, मो.नं. 9891466140

    यूसीएमएस: डाॅ. रेनु चैहान, मो.नं. 9810843551

    एमएएमसी: डाॅ. दिनेश कुमार, मो.नं. 9811161617

    एम्स (न्यूरो.): डाॅ. नसीम, मो.नं. 9968746142

    नोटो: डाॅ. विमल भंडारी, मो.नं. 9899027348

    वेणु आई बैंक: मो.नं. 9899376838

    निगम बोध घाट (हर्षवैन): मामा, मो.नं. 8586982283

    अग्रसेन सेवा समिति (हर्षवैन): मो.नं. 9212002121/9212003131

  • देह दान के लिए अपने जीवनकाल में ही दानी संकल्प ले लेता है और समिति के निर्धारित फाॅर्म को भर कर अपनी वसीयत रजिस्टर करा लेता है। वसीयत पर दो गवाहों के हस्ताक्षर होते हैं जिनमें से एक गवाह का परिवार से होना आवश्यक है।
  • दानी की मृत्यु के बाद देह दान के लिए परिवार का एनओसी, घर में मृत्यु होती है तो पारिवारिक डाॅक्टर या स्थानीय डाॅक्टर का दिया मृत्यु प्रमाण पत्र (जिसमें मृत्यु का कारण अवश्य बताया गया हो), और अगर मृत्यु अस्पताल में हुई हो तो मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ शव प्राप्ति प्रमाण पत्र ज़रूरी हैं। प्रमाण पत्र परिवार को ही लेने होते हैं।
  • फोन किए जाने के बाद संबंधित अस्पताल से शव वाहन आता है। शव के अस्पताल पहुंचने के बाद समिति के प्रतिनिधि की ज़िम्मेदारी पूरी हो जाती है।
  • शव वाहन के पहुंचने तक जो समय लगता उस बीच समिति का प्रतिनिधि निकट संबंधी, मृतक के मित्र, पड़ोसी - किसी से भी पूरी जानकारी लेता है तथा मृतक की तस्वीर भी हासिल करने की कोशिश करता है।

प्रस्तुति - इन्दु अग्रवाल