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वेबीनार - "ऑर्गन डोनेशन डे के अवसर पर वेबीनार"

इस वर्ष ऑर्गन डोनेशन डे के अवसर पर दधीचि देहदान समिति ने 28 दिसंबर 2020 को एक वेबीनार का आयोजन किया। अंगदान के विषय में जनसाधारण को जानकारियां देने व जागरूक करने के लिए अंगदान दिवस पर देश भर में कई स्वयंसेवी संस्थाएं ऑर्गन डोनेशन डे को प्रमुखता से प्रचारित प्रसारित करती हैं। समिति द्वारा किए गए इस कार्यक्रम में लोकसभा अध्यक्ष श्री ओमप्रकाश बिरला मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित थे। जैन धर्म गुरु श्री रूपचंद जी महाराज ने इस विषय का धार्मिक पक्ष रखा व समिति के कार्यकर्ताओं को इस पुण्य कार्य में लगे रहने का आशीर्वाद दिया। समिति के संरक्षक श्री आलोक कुमार ने विषय पर प्रकाश डाला और सब का मार्गदर्शन किया।

वेबीनार का आरंभ आचार्य रूपचंद जी के मंत्रोच्चार से हुआ। इसके बाद दधीचि देहदान समिति के अध्यक्ष श्री हर्ष मल्होत्रा ने सभी वक्ताओं का अभिनंदन करते हुए, इस मानव कल्याणकारी कार्य में जुड़ने के लिए उनका आभार व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि कैसे लगभग 23 वर्ष पूर्व आलोक जी की परिकल्पना से, समिति अस्तित्व में आई। देहदान- अंगदान की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने विस्तार से अपना प्रभावपूर्ण वक्तव्य दिया।

दधिचि देहदान समिति के संस्थापक अध्यक्ष एवं वर्तमान में संरक्षक, श्री आलोक कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि वह हर समय भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वह अपने कार्य में खरे उतरें। देहदान पर उन्होंने बहुत ही सुंदर व सरल तरीके से अपने विचार रखें। सृष्टि कैसे बनी, पृथ्वी कैसे बनी, मनुष्य कैसे बना, इसकी हमारे धर्म ग्रंथों में चर्चा है। प्रारंभ में सिर्फ ईश्वर थे, अन्य कोई नहीं। उनके मन में आया कि मैं एक से अनेक हो जाऊं। फिर पंचमहाभूत हुए -पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश। भारत व अन्य सभी परंपराएं कहती हैं कि भगवान ने अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप मे मनुष्य को ही बनाया। पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, वायु, आकाश का संयोग किया जिससे देह की निर्मिति हुई। उसमें प्राणों का संचार किया और फिर भगवान ही जीवात्मा होकर उस शरीर में विराजमान हो गए। इस प्रकार यह शरीर ईश्वर का एक यंत्र है। फिर जब ईश्वर की दी हुई सांसे पूरी हो जाती है तो मृत्यु कहलाती है। देह शव हो जाता है। इसके बाद पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि व आकाश का अंश उन सब को लौटाना होता है। इसके बहुत सारे तरीके हैं -अग्नि संस्कार, दफनाना, जल में प्रवाहित करना इत्यादि। इस प्रक्रिया का मोक्ष मिलने से कोई संबंध नहीं है। हमारे पूरे साहित्य में शरीर की कोई प्रशंसा नहीं की गई। शरीर को धन्य नहीं कहा गया। लेकिन महर्षि दधीचि ने कहा, "मैं धन्य हूं, मेरा शरीर धन्य है "।वे धन्य थे क्योंकि उनका शरीर काम आया। श्री आलोक कुमार ने कहा कि मैंने देहदान का संकल्प लिया है, इससे मेरा शरीर भी धन्य हो जाएगा।

नौ मन लकड़ी नहीं लगेगी, किसी के कंधों पर नहीं जाऊंगा, मेडिकल कॉलेज की गाड़ी घर आएगी, घर से कॉलेज ले जाएंगे, व विद्यार्थी उस पर पढाई कर सकेंगे। शरीर, जलकर राख होने की बजाय शिक्षा के काम आएगा, आंखें दो लोगों को रोशनी दे सकेंगी। अगर ब्रेन डेथ हुई तो ह्रदय किसी और में धड़केगा। किडनी, लीवर किसी की जीवन रक्षा कर सकेंगे, त्वचा -हड्डी भी किसी के काम आएगी। यह दान, मानवता के लिए दान है। उन्होंने कहा कि समिति में 12000 लोग जुड़े हैं और यह निरंतर चलते जाने वाला कार्य है।

आचार्य रूपचंद जी महाराज ने अपने आशीर्वचन में दान की महत्ता बताई। उन्होंने कहा, पूरी प्रकृति हमें दे रही है। सूर्य हमें ऊर्जा देता है, चंद्रमा हमें चांदनी देता है, पेड़ हमें दूषित हवाएं पीकर शुद्ध हवा देते हैं, फल देते हैं, भोजन देते हैं।। इसी प्रकार नदियां हमें जल देती हैं, गाय दूध देती है। कहने का तात्पर्य है कि पूरी सृष्टि की व्यवस्था दान पर ही आधारित है। हमारे यहां आत्मा अमर है लेकिन हम इस दान से शरीर को भी अमर बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि अपना जीवन जीकर अगर आप दूसरों का परोपकार करते हैं तो यह जीवन सार्थक हो जाता है।

मुख्य वक्ता, लोकसभा अध्यक्ष, श्री ओमप्रकाश बिरला जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि अंग दान ही जीवन दान है। अंग दान महादान है। आज की परिस्थितियों में, भारतीय संस्कृति की पुरातन काल से प्रवाहित परंपरा को और आगे बढ़ाने की तथा इसे जन आंदोलन बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमारी परंपरा रही है कि जब जब मानवता पर संकट आया है, यहां के ऋषियों ने भारतवर्ष के लिए, स्वेच्छा से अपना सब कुछ दान कर दिया। आज की परिस्थिति मे दान भावना की प्रासंगिकता उन्होंने इन शब्दों मे व्यक्त की" हमने देखा है कि करो ना काल में हमने सामूहिक सेवा के द्वारा चुनौती का मुकाबला किया है। इसी दौरान बड़ी संख्या में, प्लाज्मा दान करके, रक्तदान कर के स्वतः, जन साधारण ने सामाजिक सेवा की। "देहदान व अंगदान के प्रति समाज को उत्साहित करने के कार्य को लेकर, समिति व समस्त कार्यकर्ताओं का अभिनंदन किया। उन्होंने कहा कि महर्षि दधीचि द्वारा चिन्हित मार्ग पर, समिति 23 वर्षों से कार्य कर रही है, समाज में स्वीकार्यता के लिए कार्य कर रही है। यह सेवाभाव प्रशंसनीय है। जानकारी के अभाव में जनता अंग दान नहीं कर पाती है, यह कार्य समिति बहुत ही अच्छे तरीके से कर रही है। आने वाले समय में हम ठीक से प्रामाणिक सूचना पहुंचा कर अधिकतम लोगों को देहदान करने के लिए प्रेरित करेंगे। समिति को शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने अपना वक्तव्य समाप्त किया। संचालन, समिति के महामंत्री श्री कमल खुराना ने किया। समिति के उपाध्यक्ष, श्री सुधीर गुप्ता ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, आचार्य जी व सभी सहभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया।