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सकारात्मक सोच - आज की आवश्यकता

महेश पंत

एक कठिन समय लेकिन हम परास्त क्यों हों। मानव आज जहाँ पंहुचा है वह केवल अपनी सकारात्मक सोच एवं सर्जनात्मक प्रयास के कारण , बहुत सारी जगहों पर निराशा हाथ लगती है, निरंतर निराशा। विफलता हाथ लगती है परन्तु कोशिश जारी रहती है और एक दिन फिर वह मंजिल हमें मिल ही जाती है। अगर हताश होकर हम परिस्थिति व परिणाम को नियति मान लें तो कभी भी सफलता नहीं मिलेगी। कहते हैं हर परिस्थिति हर समय नही रहती। आज जो परिस्थितियां पूरे विश्व के सामने है वह वाकई भयावह है। हर तरफ वातावरण काफी भयभीत करने वाला है। तो क्या हम इसे नियति मान कर स्वीकार करलें। क्या भय को अपने ऊपर हावी होने दें। क्या इस महामारी को मानव अपने मन व जीवन पर हावी होने दें। नहीं, यह समाधान नहीं है।

आज के कोरोना काल में चीजों को सही तरह से आंकना और क्षमता व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जीवन जीना ही कोरोना से मुक्ति का मार्ग है। यदि परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं है तो इन्हें चुनौती के रूप में स्वीकार करके उसमें से अनुकूल मार्ग ढूँढना ही सकारात्मक सोच है। और यह सोच ही मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है। डॉक्टर व वैज्ञानिक भी कहते है कि पॉजिटिव थिंकिंग शरीर में उर्जा लाती है। हमारे अन्दर बीमारी से लड़ने की शक्ति बढ़ाते हैं जिसे इम्युनिटी कहते हैं।

विषम परिस्थितियों को जीतकर अपने को विजयी बनाने का एक उदाहरण है एक जांबाज, बहादुर भारतीय नारी अरुणिमा सिन्हा। इन्होने विपरीत परिस्थितियों पर केवल अपनी सोच से विजय पाई।

11 अप्रैल 2011 को लखनऊ से दिल्ली आते समय ट्रेन में कुछ लोगों ने लूटपाट की। विरोध करने पर उन बदमाशों ने अरुणिमा को चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया। बगल के ट्रैक पर गिरने के कारण ट्रेन से उनका पैर कट गया। रात भर वो वहीं पड़ी रही और सुबह जब लोगों ने देखा तो अस्पताल पहुँचाया। 4 महीने अस्पताल में जंग लड़ने के बाद बास्केटबॉल की राष्ट्रीय स्तर खिलाडी अरुणिमा की आँखों से आंसू निकले लेकिन उन आसुंओं ने उन्हें कमजोर करने की बजाए साहस प्रदान किया। अरुणिमा ने माउंट एवेरेस्ट की छोटी को पहुँचने की ठानी। अरुणिमा के शब्द

" मंजिल मिल ही जाएगी भटकते हुए ही सही, गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं। "

उन्होंने न केवल माउंट एवेरेस्ट पर तिरंगा लहराया बल्कि अन्य कई उचाईयों को लांघा। अरुणिमा अगर हार मानकर और लाचार होकर घर बैठ जाती तो नकारात्मक सोच के चलते कभी भी जीत, किसी भी मंजिल तक नही पहुँच पाती। उनके बुलंद हौंसले, आत्मविश्वास व सकारात्मक सोच ने उन्हें विपरीत परिस्थितियों में भी विजयी बनाया।

ऐसा ही अगर हम भी सोंचे। कामयाब तो हमें होना ही है। जीत हांसिल करनी ही है। जिन्दगी पहले की तरह गुलजार होगी बस जरूरत है तो थोड़े समय संयम की, आत्मविश्वास की।