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वेबीनार - "देहदानियों का 43वां उत्सव"

11 अक्टूबर 1997 को दधीचि देह दान समिति का पहला उत्सव दीनदयाल शोध संस्थान के सभागार में आयोजित हुआ था। उस कार्यक्रम में समिति के पहले संकल्प कर्ता थे राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख। इस दिन का एक संयोग यह भी था कि उस दिन नाना जी का जन्मदिन था। 23 वर्ष बाद 11 अक्टूबर 2020 को हमारा उत्सव उनके आदर्श व संकल्प को याद करने का था। फरवरी 2010 में उनका पार्थिव शरीर एम्स को दान में दिया गया था।

कोरोना काल में देहदानियों का उत्सव वेबीनार के रूप में हुआ। कार्यक्रम का संचालन, दीनदयाल शोध संस्थान के महासचिव श्री अतुल जैन ने किया। श्री जैन ने नाना जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी तथा शतायु मंत्र उच्चारण के लिए समिति की उपाध्यक्ष श्रीमती मंजू प्रभा को आमंत्रित किया। इसके बाद उन्होंने पूर्व राज्यसभा सांसद, डॉक्टर महेश चंद्र शर्मा, अध्यक्ष, एकात्म मानव दर्शन शोध एवं अनुसंधान प्रतिष्ठान, को अपने विचार रखने का आग्रह किया।

डॉक्टर महेश चंद्र शर्मा ने समिति के सभी कार्यकर्ताओं का अभिनंदन करते हुए कहा कि सभी जो इस कार्यक्रम से जुड़े हैं वह एक विशेष आग्रह और अनुष्ठान के साक्षी हैं। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक. भाषा में एक मुहावरा सुना था मरणो त्योहार या मरणो पर्व। भारतीय संस्कृति मृत्यु को भी पर्व में बदल देती है, उसका ही यह आधुनिक संस्करण है, जिसके प्रणेता श्री आलोक कुमार हैं जिन्होंने देहदान को उत्सव बना दिया है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि वह भी इस पुण्य कार्य का हिस्सा हैं।

तत्पश्चात इस आंदोलन के प्रणेता व समिति के संरक्षक श्री आलोक कुमार ने एक बहुत ही प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत कर सहज भाव से देहदान व अंगदान पर अपने विचार रखे।उन्होंने अपनी राखी बहन चित्रा चारी का उल्लेख करते हुए बताया कि किस तरह उन्होंने बहुत ही छोटी उम्र में अपने पति की आकस्मिक मृत्यु के पश्चात उनका ह्रदय दान किया था। उस समय वह दिल्ली में अकेली अपने दो छोटे बेटों के साथ थी। परंतु उन्होंने उस दुःखद घड़ी में भी हिम्मत रखते हुए यह पुण्य माना जाने वाला कार्य किया।

उन्होंने हृदय को छूने वाली उस घटना का भी उल्लेख किया जिसमें हृदय प्राप्त करने वाले व्यक्ति ने चित्रा का आभार व्यक्त किया था। इस घटना के 23 -24 वर्ष पश्चात जब चित्रा चारी के ससुर की मृत्यु हुई तो करोना काल में दृढ़ संकल्प दिखाते हुए उनका देह दान किया। इस दान की प्रक्रिया में उन्हें 4 दिन लगे लेकिन उनका निश्चय दृढ़ रहा। इस निष्ठा को रखने वाले लोग देहदान के अभियान को आगे चला रहे हैं।

उन्होंने कहा, "सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया:" इस निरामयता को पूरा समाज प्राप्त करे।अपने महत्वपूर्ण अंगों को लेकर हम अग्नि संस्कार में उनको जला दें और उन अंगों की प्रतीक्षा में लोग अस्पताल में पड़े रहे, यह तो विडंबना है। हमारी आंखें जो बाद में भी देख सकती हैं, ह्रदय धड़क सकता है, किडनी लिवर अपना काम कर सकते हैं, हमारी हड्डियां व त्वचा दान हो सकने वाली यह सभी वस्तुएं हैं।

अच्छा डॉक्टर बनाने के लिए और नए अनुसंधान के लिए मृत शरीर का उपयोग किया जाता है। तो जिसको हम मिट्टी समझते हैं उसका मोह कैसा? उन सब का तो दान करना चाहिए। अंत में उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया को दिल्ली एनसीआर में समिति ने सफल बनाया है।

डॉ हर्षवर्धन ने अपने विचार रखते हुए कहा कि उनका दधीचि देह देहदान समिति से पुराना जुड़ाव है। उन्होंने कहा कि अपनी पढ़ाई के दौरान ही श्री आलोक कुमार से पत्र व्यवहार के जरिए उनकी देहदान पर काफी चर्चा हुई थी। बाद में समिति के गठन के बाद पहले कार्यक्रम में उन्होंने भी सपत्नीक संकल्प लिया हुआ है। उन्होंने समिति के कार्यकर्ताओं का अभिनंदन किया। नानाजी देशमुख को श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने कहा कि उनको नाना जी के सान्निध्य से काम करने की ऊर्जा मिली।

देहदान पर बोलते हुए उन्होंने सबसे आह्वान किया कि मेडिकल कॉलेज में इसकी बहुत कमी है। सब को आगे आकर इस यज्ञ में आहुति देनी चाहिए।

10 लाख से अधिक साधु शिष्यों के आचार्य व जूनापीठाधीश्वर हैं स्वामी अवधेशानंद जी। इस कार्यक्रम में उनका भी आशीर्वाद प्राप्त हुआ उन्होंने कहा कि यह कुछ ऐसा कार्य है जिसमें कुछ ही लोग आगे निकल कर आए हैं। उनके अनुसार परमात्मा की 3 सत्ता है व्यवहारिक सत्ता, प्रतिभासिक सत्ता और मूल सत्ता। सन्यास में सिखाया जाता है कि जो कुछ तुम्हारा है वह ईश्वर को समर्पित हो गया है और आप सब में ईश्वर ही देखेंगे, नारायण ही देखेगे।

देहदान पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि अभी तक उन्होंने ऐसा संवाद किसी से नहीं किया है। पर हां कुंभ का अवसर आ रहा है। कितना अच्छा हो कि यदि समिति कुंभ में हम लोगों से संवाद करे। उस समय भारत के सभी ऋषि, मुनि, संत, महंत, मंडलेश्वर, आचार्य आदि सभी पीठाधिपति वहां उपस्थित रहेंगे। मेरे लाखों नागा सन्यासी भी उस समय होंगे। यह एक बहुत ही अच्छा अवसर होगा। उनके अनुसार सन्यासी की देह उसकी नहीं होती। वे अपने आचार्यों से इसकी चर्चा करेंगे कि किस प्रकार वह इस विषय पर कोई दिशा ले सकते हैं। अंत में उन्होंने कुंभ पर आने का फिर से कहा तथा समिति के कार्य को अद्भुत, अलौकिक और अनुकरणीय बताया।

अध्यक्षीय भाषण में, दीनदयाल शोध संस्थान के अध्यक्ष श्री विरेंद्र जीत सिंह ने कहा कि अगर संत समाज इस अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर अपना मत देता है तो यह निस्संदेह जन आंदोलन बन जाएगा। देहदान विषय को आगे बढ़ाने हेतु समिति का आभार प्रकट किया व कहा कि शोध संस्थान इस विषय पर कैसे सहयोग कर सकता है इस पर अवश्य विचार करेंगे।

अंत में समिति के अध्यक्ष श्री हर्ष मल्होत्रा ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में 43 वें उत्सव में सभी संकल्प कर्ताओं का आभार प्रकट करते हुए उन्हें साधुवाद दिया। समिति के कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन करने के लिए उन्होंने सभी वक्ताओं को धन्यवाद दिया।