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गौरव का पल

अंगदान या देहदान के संकल्प को पूरा कराना परिवार की नैतिक जिम्मेदारी - शशि भंडारी

दिनांक 12 जनवरी 2005 को प्रात: 5.00 बजे मेरे पिताजी ने अंतिम सांस ली। मैं अपनी पत्नी और दोनों पुत्रों के साथ, कनॉट प्लेस के सैन्ट्रल रेलवे अस्पताल में था। मैंने पत्नी और बच्चों को घर जाने के लिए कहा और स्वयं पिताजी की देह को लेकर लगभग 8 बजे एम्स के लिए रवाना हुआ | पिताजी ने मृत्यु उपरांत देहदान का संकल्प दधीचि देहदान समिति के माध्यम से लिया था।

मैं उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए सुबह 8:45 पर एम्स पहुंच गया।

मैं पिताजी के उन सभी अंगों का दान करना चाहता था, जो जीवन के लिए आवश्यक अंग माने जाते हैं। उनकी भी यही इच्छा थी।

वहां जब पहुंचे तो राजेन्द्र प्रसाद आई इंस्टीट्यूट के माध्यम से बहुत जल्द नेत्रदान का कार्य पूरा हो गया। लेकिन शेष अंगों के दान की प्रक्रिया में एम्स का रवैया सहयोग वाला नहीं रहा।

तब तक पिताजी की मृत्यु की सूचना मिलने पर श्री आलोक कुमार और दधीचि देहदान समिति के अन्य पदाधिकारी भी एम्स पहुंच गए। हम सबने तर्क रखा कि जब इस काम के लिए ऑर्गन रीट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन (ओरबीओ डिपार्टमेंट) की जिम्मेदारी तय है और फिर दाता की देह को लेकर भी उनके परिवार के लोग आ गए हैं तो फिर दान लेने में मुश्किल क्या है?

सवाल-जवाब होते रहे, आखिरकार हमलोगों के बहुत जोर देने पर एम्स के उच्च अधिकारियों की तुरंत बैठक हुई।

वे पिताजी के अस्थियों को लेने के लिए राजी हो गए। करीब 12:30 बजे पिताजी की देह ओ.टी. में ले जाई गई और करीब 4 बजे उनकी बॉडी ओ.टी. से बाहर आई। उनके शरीर से दस महत्वपूर्ण अस्थियां ली गईं और फिर उन स्थानों पर कृत्रिम हड्डियां डालकर बॉडी को स्टिच कर दिया गया। डॉक्टर्स ने हमें बैंक का चैम्बर दिखाया। डॉक्टर्स ने बताया कि यह चैम्बर पिछले 2 सालों से वहां पर है लेकिन अस्थियों के दान का यह पहला मामला है और अब पहली बार इस चैम्बर का उपयोग होगा।

मैंने 4 बजे पिता जी के देह को एम्स से लेकर करीब 4 बजे शाहदरा अपने घर पहुंचा। फिर हमने पूरे विधि विधान से उनका अंतिम संस्कार किया।

मेरा उपरोक्त संस्मरण लिखने का सिर्फ एक ही उद्देश्य है। देहदानी अपने जीवन में देहदान की इच्छा व्यक्त कर जाता है, लेकिन जीवन के अंत के बाद उसकी इच्छा की पूर्ति करना परिवार जनों का दायित्व बन जाता है, जो कि उन्हें जरूर पूरा करना चाहिए।

बहुत बाधाएं आती हैं। रिश्तेदार कई प्रकार की बातें करते हैं। सरकारी काम में भी अवरोध आते हैं, लेकिन डोनर के परिवार जन अगर अडिग हों तो डोनर की इच्छापूर्ति जरूर होती है।

मैं दधीचि देहदान समिति का आभारी हूं, जिनके माध्यम से हमें यह दान करने का अवसर प्राप्त हुआ।

मैं यहां उस घटना का उल्लेख भी करना चाहूंगा, जब मैं डीडीएस के कार्यक्रम दधीचि कथा में 23 नवम्बर,21 को शामिल हुआ। कथा में कथावाचक ने मेरे पिताजी को वर्तमान समय का दधीचि कहते हुए स्क्रीन पर उनका चित्र दिखाया। मैं भावुक हो गया। सभागार खचाखच भरा हुआ था। मैं अपने परिवार को और पिताजी को बहुत सम्मान जनक स्थान पर देख रहा था।

मेरे मन मस्तिष्क में 12 जनवरी 2005 की सभी घटनाएं, जो मेरे पिता स्व. जयपाल भंडारी जी के नेत्र दान और अस्थिदान से जुड़ी थीं, एक साथ ताजा हो गई। मुझे लगा कि मेरे पिताजी समाज के लिए एक नेक काम कर के गए हैं।

मृत्यु को उत्सव में बदल देने का नेक काम है अंगदान - डॉक्टर ललिता मक्कड़

दधीचि देहदान समिति तथा श्री मांगेराम गर्ग चैरिटेबल सोसाइटी द्वारा आयोजित दधीचि कथा उत्सव में समिति की उपाध्यक्षा श्रीमती मंजू जी के कहने पर हमें भी जाने का सुअवसर मिला, जिसमें सभी देहदानियों और अंगदानियों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए और उनके परिजनों को सम्मान दिया गया।

इस मौके पर जब स्मृति ईरानी जी ने हमारे पिताजी श्री वीरभान जी को याद किया और हमारी माताजी और परिवार वालों को दुख के कठिन समय पर भी हिम्मत दिखाने और अंगदान कराने पर धन्यवाद दिया, तो वहां उपस्थित सभी की आँखे भर आईं कि अपने दुख से बढ़कर दूसरों के लिये सोचना सामान्य बात नहीं।

इस कार्य को पूरा करने और इसके लिए प्रोत्साहित करनेवाली समिति को मेरी ओर से बहुत-बहुत धन्यवाद।

यह सृष्टि एक रंगमंच है और यहां हर एक व्यक्ति अपना बहुत सुन्दर रोल प्ले कर रहा है। शरीर को चलाने वाली चैतन्य सत्ता को हम आत्मा कहते हैं जो अजर है, अमर है, अविनाशी है और उसी में हमारे कर्मो, संस्कारो का सारा लेखा जोखा निहित है। हम जो भी अच्छे, बुरे कर्म करते हैं दुनिया उसी अनुसार हमें याद करती है। यह शरीर तो एक वस्त्र के समान है, जो समय के अनुसार बदल जाता है। गीता में भी तो यही कहा गया है। 

हमें कभी इन बातों को नहीं भूलना चाहिए। दधीचि देहदान समिति जो देहदान और अंदान का ये पुण्य कार्य कर रही है, उसमें किसी की भी मृत्यु को उत्सव में बदलने की क्षमता है।

इस समिति के सभी कार्य कर्ताओं को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम !!