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समिति की टीम आर्मी मेडिकल काॅलेज मे

परोपकार की स्वाभाविक प्रक्रिया अंग व देह दान

दधीचि देह दान समिति के अध्यक्ष श्री आलोक कुमार और समिति के अन्य सदस्य श्री कमल खुराना, श्रीमती पूनम खुराना तथा श्री महेश पंत की एक टीम 14 दिसम्बर 2015 को दिल्ली स्थित आर्मी मेडिकल काॅलेज आॅफ मेडिकल साइन्सेज़ (एसीएमएस) में गई। टीम ने एसीएमएस के डीन एवं प्रोेफेसर (आॅर्थोपेडिक्स) मेजर जनरल एन. सी. अरोड़ा (सेवानिवृत्त); प्रोफेसर एंड हेड (एनाॅटमी) कर्नल बी.के. मिश्रा; डाॅ. शेफाली एम. रस्तोगी, एसोसिएटेड प्रोफेसर और डाॅ. नीता छाबड़ा, असिस्टेन्ट प्रोफेसर से डीन के कक्ष में मुलाकात एवं बातचीत की। उनसे यह जानने की कोशिश की कि अंग दान और मृत्यु के बाद पूरी देह के दान की दिशा सेना का अस्पताल और चिकित्सक क्या भूमिका निभा रहे हैं? और इसके बारे में वो क्या सोचते हैं? इसके अलावा टीम ने मेडिकल के छात्र-छात्राओं से भी बात की और उनके मेडिकल के पहले साल के अनुभवों को बांटा।

टीम के सदस्यों ने मेडिकल काॅलेज और समिति के बीच मृत देहों यानी केडेवर्स के दान पर समन्वय और इसमें आने वाले अन्तराल पर मुद्दा उठा। इस मेडिकल काॅलेज को समिति अब तक 26 केडेवर दान कर चुकी है। बीच में डोनेशन को लेकर एक अंतराल भी आ गया था। वजह यह थी कि समिति के एसीएमएस में जो सम्पर्क व्यक्ति थे, डाॅ. ललित, उन्होंने वहां से इस्तीफा दे दिया था। इसकी जानकारी समिति को नहीं थी। बहरहाल, समिति की तरफ से उनको केडेवर दान के लिए फोन जाता रहता था और वह कभी-कभी एनाॅटमी विभाग के हेड कर्नल मिश्रा से बात करके केडेवर को एसीएमएस में मंगा लेते थे। लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने समिति के फोन उठाने बंद कर दिए। और, जब हेड कर्नल मिश्रा का समिति के पास फोन आया तब सारी स्थिति स्पष्ट हुई।

श्री आलोक कुमार ने बताया कि प्रेरणा ही समिति और एसीएमएस के बीच समन्वयक का काम करती है। उल्लेखनीय बात यह है कि जहां से उन्हें प्रेरणा मिली, एसीएमएस के डीन एवं प्रोेफेसर (आॅर्थोपेडिक्स) मेजर जनरल एन. सी. अरोड़ा (सेवानिवृत्त) ने भी वहीं से पढ़ाई की थी। एसीएमएस को समिति अब तक 26 केडेवर दान कर चुकी है।

श्री आलोक कुमार ने बताया इसके बाद उन्होंने और उनके कुछ साथियों ने अपनी-अपनी विल रजिस्टर कराई, लेकिन समिति बनाने का विचार तब भी मन में नहीं आया था। फिर एक दिन जब नानाजी देशमुख ने कहा कि मृत्यु बाद वह अपनी देह का दान करना चाहते हैं तब लगभग 17 वर्ष पहले समिति का अस्तित्व ‘दधीचि देह दान समिति’ के नाम से सामने आया। अस्तित्व में आने के बाद से समिति अब तक 115 केडेवर, 860 नेत्र, दो मस्तिष्क मृत व्यक्तियों के अंग दान कर चुकी है।

समिति की टीम के एक सदस्य द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या एसीएमएस के चिकित्सक देह दान के लिए लोगों से कहते हैं या उन्हें प्रेरित करते हैं तो एनाॅटमी विभाग के हेड कर्नल मिश्रा ने बताया यह उनके कार्यक्षेत्र में नहीं आता, यह सवाल प्रशासनिक विभाग है। लेकिन उन्होंने यह ज़रूर कहा कि जब अंग दान हो सकते हैं तो देह दान भी हो सकता है। साथ ही उन्होंने इस पर धार्मिक ग्रंथों का मुद्दा उठाया कि देह दान पर उनमें कुछ भी नहीं लिखा गया है।

तब श्री आलोक कुमार ने स्पष्ट किया कि इस दिशा में समिति ने कुछ कोशिश की है। उन्होंने बताया कि समिति की ओर से वह एक तो श्री श्री रविशंकर के पास बैंगलोर गए थे। उन्होंने जो साक्षात्कार दिया वह यूट्यूब पर उपलब्ध है। दूसरे एक बड़े संत हैं मुरारी बापू। उनके पास गुजरात में गए। दीदीमां साध्वी ऋतम्भरा के पास भी गए। और, एक जैन संत हैं आचार्य रूपचंद उनके पास भी गए। इन चारों ने कहा कि वह वीडियो साक्षात्कार देने के तैयार हैं, और इन चारों के साक्षात्कार यूट्यूब पर डाल दिए गए हैं। इसलिए आज के जो धार्मिक प्रवक्ता (रिलीजियस टीचर्स) हैं, और ये जो चार नाम हैं, वो सभी इस बात को मानते हैं कि देह दान धर्मग्रंथों के अनुकूल है। और, इनके माध्यम से समिति ने समाज में देह/अंग दान की भावना को जगाने व प्रसारित करने का प्रयास किया है।

एसीएमएस के एनाॅटमी विभा के हेड कर्नल मिश्रा ने समिति को बताया केडेवर्स की सर्वाधिक ज़रूरत चिकित्सा की पढ़ाई (एमबीबीएस) के पहले साल में होती है। वर्तमान में एसीएमएस में पहले साल मेें कुल 100 विद्यार्थी हैं और इस समय एक केडेवर पर 13 विद्यार्थी मानव शरीर की प्रारम्भिक जानकारी, यानी सामान्य मानव शरीर रचना (एनाॅटमी), मानव शरीर की सामान्य कार्यप्रणाली (फिज़ियोलाॅजी) और मानव शरीर के सामान्य रसायनों (बायोकेमिस्ट्री) को पढ़ते हैं। जबकि, कम से कम 5 विद्यार्थियों के बीच में एक केडेवर अत्यावश्यक है। कर्नल मिश्रा ने बताया कि आदर्श स्थिति में उन्हें 20 केडेवर्स चाहिए और, इसके बाद ही एमबीबीएस के अन्य वर्षों के विद्यार्थियों के लिए केडेवरिक वर्कशाॅप लगा सकते हैं जिसमें उन्हें पूरी मृत देह उपलब्ध हो जाएगी और वो अपनी-अपनी रुचि केे मुताबिक अभ्यास कर सकेंगे।

डीन एवं प्रोेफेसर मेजर जनरल एन. सी. अरोड़ा ने बताया कि भारत में अभी दो-तीन मेडिकल काॅलेज ऐसे हैं जिन्होंने केडेवरिक वर्कशाॅप लैब खोली है। जैसे ‘मैं आॅर्थोपेडिक सर्जन हूं। किसी स्टेज पर तो मैंने पहला आॅप्रेशन किया होगा। आज ही तारीख में केडेवर पर अभ्यास, स्किल प्रेक्टिस केडेवरिक वर्कशाॅप लैब में होते हैं। ऐसा मैंने अपने काॅलेज में 2010 में एनाॅटमी लैब में किया था। हम भी एक केडेवरिक वर्कशाॅप लैब शुरू करना चाहते हैं। इसमें हम 20 डाॅक्टर्स को बुलाना चाहेंगे और दो-तीन इन्स्ट्रक्टर्स बुला कर अलग-अलग सर्जिकल विधि का डिमाॅन्स्ट्रेशन देना चाहेंगे। जैसे कोई पैल्विस फे्रक्चर को जानना-समझना और ठीक करना चाहता है, कोई आंत का प्रत्यारोपण (इन्टेस्टाइन ट्रान्स्प्लांट) सीखना चाहता है - जो एक नई विधि है, कोई कान का आॅप्रेशन करना चाहता है, कोई स्कल्प (खोपड़ी) का करना चाहता है, कोई मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) की सर्जरी सीखना चाहता है, न्यूरोसर्जन अपनी करेंगे, स्पाइन वाले स्पाइन के बारे में अभ्यास करेंगे और आॅर्थोपेडिक्स वाले आॅर्थोपेडिक्स का अभ्यास करेंगे। यकृत प्रत्यारोपण (किडनी ट्रांस्प्लांट) वाला यकृत का प्रत्यारोपण करना सीखना चाहता है, यकृत कैसे निकालना है कैसे दूसरी देह में डालना है। इस तरह एक केडेवर पर अनेक विधियों को सीखा जा सकता है, उनका अभ्यास किया जा सकता है। इस तरह देह दान से अंतहीन सम्भावनाएं हैं।’
उन्होंने आगे कहा, ‘इसका अगला फायदा सर्जिकल ट्राॅमा रिस्पाॅन्स टेक्नीक का है। बम धमाके के घाव कैसे होंगे इसका प्रशिक्षण आर्मी के सर्जन्स को दिया गया था। यह प्रशिक्षण हमने वर्धमान मेडिकल काॅलेज और यूसीएचएस के साथ मिल कर लिया था। अब यह एएफएमसी में मेडिकल सर्जरी का हिस्सा है।’

सिम्युलेशन्स के बारे में कर्नल मिश्रा ने बताया कि यह इनवर्सिव टेक्नोलाॅजी से होता है। इस टेक्नोलाॅजी में थ्री डायमेन्शन में केडेवर को देख सकते हैं, लेकिन इसमें फील नहीं आता, जबकि केडवरिक डिसेक्शन फील देता हैं। इसीलिए सीधे केडेवर पर काम करके सीखना बेहतर है।

एनाॅटमी लैब में समिति की टीम ने आॅनर बोर्ड भी देखा, जिस पर दान की गई सभी मृत देहों के नाम, उनके दान की तारीख व जहां से वो आई हैं उन जगहों के नाम लिखे हुए थे। यह अपने आप में संतोषदायक अनुभव था कि एसीएमएस में दान में मिली देह को इतना सम्मान दिया जाता है।

समिति की टीम ने इसके बाद विद्यार्थियों से बातचीत की। सबसे पहले कर्नल मिश्रा ने टीम के सदस्यों का विद्यार्थियों से परिचय कराया और बताया कि उनकी मेडिकल की पढ़ाई की शुरूआत के लिए काफी केडेवर दधीचि देह दान समिति द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं। सभी पहले वर्ष के विद्यार्थी थे। मेडिकल में अपने दाखिले और दाखिले के बाद पहले साल अनुभवों को उन्होंने बहुत बेबाकी से बताया। सभी का कहना था कि उन्हें रोमांच (एक्साइटमेंट) था अपनी आंखों से यह देखने का कि मानव शरीर के अंदर क्या-क्या है। वो मानव शरीर के अंदर की एक-एक रक्त शिराएं और नव्र्स (तंत्रिकाएं) और अंग देख पाएंगे। सभी विद्यार्थियों ने यह भी कहा कि केडेवर को देख उनके मन उसके प्रति सम्मान का भाव आता है और उस पर अपनी पढ़ाई शुरू करने के लिए उसकी चादर हटाने से पहले उसकी आत्मा को धन्यवाद देते हैं।

विद्यार्थियों ने बताया कि ऐसा करना उन्हें पहले दिन से ही सिखाया गया है। एमबीबीएस के पहले साल में पहली बार जब वह एनाॅटमी लैब में आते हैं तो एक छोटी सा आयोजन उनसे कराया जाता है। इस आयोजन में वो मृत व्यक्ति की आत्मा हो सम्मान देते हैं, बाकी आत्माओं के लिए प्रार्थना करते हैं और उनके लिए धन्यवाद की प्रार्थना करते हैं जिन्होंने सर्वोत्तम दान (मृत्यु के बाद सम्पूर्ण देह का दान) किया। यह पूछे जाने पर कि यह क्या हर मेडिकल काॅलेज में किया जाने वाला आम अभ्यास है या यह आप लोग ही करते हैं? जो विद्यार्थियों ने जवाब दिया कि यह अभ्यास एसीएमएस ने ही शुरू किया है।

समिति के अध्यक्ष ने जब उनसे पूछा कि क्या वह देह दान करने वाले व्यक्ति के परिवार को धन्यवाद का पत्र देना चाहेंगे और कोई दो लोग जाकर यह बताएंगे कि उन्होंने कितना बड़ा काम किया है तो सभी ने संवेद स्वर में हांमी भरी। अध्यक्ष ने बताया ऐसा करने से परिवार को महसूस होगा कि उन्हें सम्मान दिया गया है तथा वह दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकेंगे।

टीम के एक अन्य सदस्य ने इस पर कहा कि ऐसा करना विद्यार्थियों को न केवल ह्यूमन बीईंग बनाएगा बल्कि भविष्य में वो जो बनने जा रहे हैं उसके लिए उनमें ज़िम्मेदारी की भावना भी पैदा करेगा।