Home
Print
Next

देहदानियों का उत्सव

दधीचि देह दान समिति का ‘देहदानियों का उत्सव’ 10 नवंबर, 2017 को आयोेजित किया गया। यह आयोजन राष्ट्रपति भवन में, महामहिम रामनाथ कोविन्द की गरिमामयी उपस्थिति में हुआ। इस कार्यक्रम में समिति को व समिति के देह दान/अंग दान के अभियान को महामहिम का आशीर्वाद मिला। साथ ही डाॅ. जितेन्द्र सिंह, राज्य मंत्री पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय एवं प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा बाॅडी आॅर्गन डोनेशन टुवर्ड्स हेल्दी सोसाइटी नामक पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया।

एक घंटे के इस कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्र गान से हुई। तत्पश्चात् श्रीमती दिव्या आर्या ने हमारी समिति की नियमित वेद प्रार्थना का उच्चारण किया, जिसमें हम सौ वर्ष तक स्वस्थ अंगों के साथ निरामय जीवन की कामना करते हैं।

समिति के महामंत्री श्री हर्ष मल्होत्रा ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए सभी आगंतुकों का स्वागत किया। उन्होंने समिति का संक्षिप्त परिचय देते हुए कहा कि पिछले 20 वर्षों से हम आलोक जी के मार्ग दर्शन में देह दान/अंग दान का अभियान चला रहे हैं। तत्पश्चात् उन्होंने समिति के अध्यक्ष श्री आलोक कुमार को उनके वक्तव्य के लिए आमंत्रित किया।

श्री आलोक कुमार ने कहा कि आज सौभाग्य व आनंद का विषय है क्योंकि भारत के मुखिया, हमारे राष्ट्रपति देह दान/अंग दान के इस कार्य को अपना आशीर्वाद देने के लिए यहां पधारे हैं। हम स्वस्थ सबल भारत बनाने के लिए पुरुषार्थ करें और हमारे जाने के बाद जो मिट्टी बच जाती है उसको भी स्वस्थ सबल भारत के यज्ञ के लिए समर्पित कर दें। शरीर और अंग दान करने के बाद दान की हुई वस्तु को स्वस्थ सबल रखना हमारा दायित्व हो जाता है। इस आयोजन में राष्ट्रपति जी का आशीर्वाद हमें मिला, जिससे मेरा विश्वास है कि हमारा यह आंदोलन गति पकड़ेगा।

अपने वक्तव्य के बाद समिति की ओर से श्री आलोक कुमार ने राष्ट्रपति व डाॅ. जितेन्द्र सिंह को प्रतीक चिह्न भेंट किए।

श्री सूरज गुप्ता ने बड़े संयम के साथ अपने भावुक क्षणों को उपस्थित समूह के साथ सांझा किया। उन्होंने बताया कि हार्ट सर्जरी के बाद भी जब 7 दिन के उनके पुत्र को नहीं बचाया जा सका, तो अपने पिताजी की राय पर उन्होंने विचार किया और एम्स में अपने शिशु का देहदान कर दिया।

श्रीमती कीर्ति पाराशर ने बताया कि 4 वर्ष पहले उन्हें प्रत्यारोपण से हृदय प्राप्त हुआ था। अब वह स्वस्थ व सफल जीवन जी रही हैं। उस परिवार के लिए वह हमेशा कृतज्ञ महसूस करती हैं जिसने अपने प्रियजन का दिल उन्हें दिया, यह जानते हुए भी कि हार्ट रेसिपियन्ट उनसे कभी नहीं मिलेगा। समाज को वापस देने की भावना से श्रीमती पाराशर ने आॅर्गन इण्डिया नाम की संस्था बना कर काम शुरू किया है। यह संस्था अंग देने और लेने वालों का एक नेट वर्क है।

समाचार पत्र पंजाब केसरी की डायरेक्टर श्रीमती किरण चोपड़ा ने बताया कि उन्होंने नेत्र दान के कई कार्यक्रम आयोजित किए, पर स्वयं कभी नेत्र दान का संकल्प नहीं किया। दधीचि देह दान समिति के एक कार्यक्रम में उन्होंने जब हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद सामान्य जीवन जी रही एक महिला के अनुभव सुने, तो उसी कार्यक्रम में अपनी देह दान का संकल्प ले लिया और संकल्प पत्र भी भर दिया। उन्होंने बताया कि इससे पहले अनेक आशंकाओं और विचारों ने उन्हें देह-अंग दान करने से रोक रखा था।

बाॅडी, आॅर्गन डोनेशन टुवर्ड्स हेल्दी सोसाइटी पुस्तक के लेखक श्री अरुण आनंद ने बताया कि देह-अंग दान पर पुस्तक लिखने का विचार पिछले वर्ष श्री आलोक कुमार ने रखा था। जब हमने खोज शुरू की तो पाया कि इस विषय को समग्रता से प्रस्तुत करने वाली एक भी पुस्तक भारत में नहीं है। इस गैप को भरने के लिए यह पुस्तक एक प्रयास है। दानी और प्राप्तकर्ता कहां जाएं? क्या करें? - इन सभी प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास इस पुस्तक में किया है।

इसके बाद डाॅ. जितेन्द्र सिंह (राज्य मंत्री, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय व प्रधानमंत्री कार्यालय) ने श्री आनंद की पुस्तक का लोकार्पण किया। पुस्तक की पहली प्रति राष्ट्रपति को भेंट की। डाॅ. सिंह ने कहा कि ‘मुझे विश्वास है कि देश के मुखिया के ये कुछ क्षण जो हम यहां से समेट कर अपने साथ ले जाएंगे, आने वाले वर्षों में हमारे इस अभियान के लिए प्रेरणा स्रोत रहेंगे। आलोक जी बधाई के पात्र हैं। उनके और उनकी टोली के प्रयास से ही आज का यह आयोजन संभव हुआ है। पुस्तक के लेखक श्री अरुण आनंद बधाई के पात्र हैं, क्योंकि बड़े गहरे शोध के बाद उन्होंने इस पुस्तक की रचना की है।’ पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए उन्होंने श्री प्रभात को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक से देह-अंग दान को लेकर आज भी समाज में फैली भ्रान्तियां दूर हो सकेंगी।

राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविन्द ने कहा कि यह समारोह शासकीय परम्परा के तहत नहीं है। यह संवेदनाओं से भरे व्यक्ति की आत्मा को झकझोरने वाला कार्यक्रम है। मानव धर्म का पालन करने में देह-अंग दान करके जीवन देने वालों का मैं अभिनंदन करता हूं। दधीचि देह दान समिति का यह सराहनीय कार्य कर्तव्यपरायणता का बोध कराता है। दान हमारे भारत की प्राचीन सभ्यता का अभिन्न अंग है। देह दान के प्रेरणा स्रोत महर्षि दधीचि हैं, जिनके नाम से यह समिति स्थिर लेकिन सुनिश्चित गति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही है।’ राष्ट्रपति ने आशा जताई कि समिति के प्रयासों से देह-अंग दान के संदर्भ में फैली भ्रांतियां शीघ्र दूर हो सकेंगी। उन्होंने धर्मगुरुओं से भी भ्रांतियों को दूर करने का आह्वान किया।

अंत में पुस्तक के प्रकाशक श्री प्रभात ने कार्यक्रम की सफलता के लिए समिति के सभी सदस्यों, राष्ट्रपति भवन के पदाधिकारियों और उपस्थित सभी आमंत्रितों को धन्यवाद दिया। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

‘देहदानियों के उत्सव’ समारोह के अवसर पर संबोधन के अंश

राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द

आज का यह समारोह कोई शासकीय या पंरपरागत समोराह नहीं बल्कि संवेदनाओं से भरा, दिल को छूने वाला, व्यक्ति की आत्मा को झकझोरने वाला कार्यक्रम है। मैं उन सभी मानव धर्म के पालन करने में, अपनी देह का दान कर, नया जीवन देने वाले व्यक्तियों का अभिनन्दन करता हूँ। देह दान कर दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने का यह सराहनीय कार्य हमें अपनी कर्तव्यपरायणता का बोध करता है।

देह-अंग करना हमने किसी अन्य देश या संस्कृति से नहीं सीखा। अपितु यह हमारी प्राचीन सभ्यता का अभिन्न अंग रहा है। त्याग, समर्पण व नया जीवन देने के ये मूल्य हमारी परंम्परा की सौगात हैं। महर्षि दधीचि ने अपने देह-अंगों का दान दिया था ताकि देवता उनकी हड्डियों से वज्र बना सकें और आसुरों को हरा सकें। मैं महर्षि दधीचि के नाम से प्रेरित, दधीचि देह दान समिति को उनके देह-अंग दान के प्रति जागरूकता फैलाने के कार्य के लिए बधाई देता हूँ।

मानव कल्याण हेतु देह-अंग दान कर चुके एवं भविष्य में अंग दान करने का निर्णय लेने वाले व्यक्तियों का संकल्प एवं निष्ठा, हमारी सभ्यता में पले संस्कारों का चित्रण है। हमारे जीवनकाल में या हमारी मृत्यु के बाद हमारा शरीर या शारीरिक अंग किसी और मनुष्य के उपचार के लिए उपयोगी हो सके, यह सोच हमारे समाज व देश की आने वाली पीड़ी को एक मानवीय दृष्टिकोण प्रदान करेंगी।

हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि हम लोगों को देह-अंग दान से संबंध्ति प्रक्रिया को सरल रूप से समझाये और इन्हें देह-अंग दान के लिए प्रोत्साहित करें। उनके स्वाभाविक सवालों के उत्तर देकर उन्हें संवेदनशील व जागरूक बनायें। हम यह भी सुनते हैं कि आर्थिक विपन्नता के चलते व्यक्ति, पैसों के लिए, अपने शरीर के अंगों जैसे कि लीवर, किडनी को अवैध देह-अंग बाजार में बेचने पर मजबूर हो जाते हैं। यह निदंनीय है, अविश्वसनीय है और अस्वीकार्य है। अगर हम सब मानवहित में, देह-अंग दान का स्वैच्छिक संकल्प लें तो अवैध देह-अंग बाजार स्वयं ही समाप्त हो जाएगा।

मुझे प्रसन्नता है कि दधीचि देह दान समिति ने भी इस संदर्भ में अच्छे प्रयत्न किये हैं। मुझे बताया गया कि समिति अब तक 179 लोगों की पूरी देह दिल्ली-एनसीआर के मेडिकल संस्थानों को दान कर चुकी है। मैं यह सुनकर अभिभूत हुआ कि आठ हजार लोगों ने समिति के साथ देह-अंग दान करने का संकल्प लिया है। यह संपूर्ण देश के लिए प्रेरणाकारी है।

मुझे ज्ञात है कि कई ओर सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाऐं भी इस अत्यंत सराहनीय कार्य से जुड़ी हैं। इन संस्थाओं के अलावा मैं चिकित्सकों, शिक्षकों तथा धर्म गुरूअों से भी देह-अंग दान के प्रति जन-समाज में जागरूकता फैलाने की अपील करता हूँ। उनकी प्रेरणा से शिक्षा संस्थानों में पढ़ रहे सभी छात्र-छात्राएँ और समाज के अन्य वर्गों के लोग देह-अंग दान का महत्व जान पायेंगे। मैं दधीचि देह दान समिति और इस विषय से जुड़ी सभी संस्थाओं से आग्रह करूंगा कि वे मानव कल्याण रूपी इस यज्ञ में देशव्यापी जागरूकता द्वारा अपना बहुमूल्य योगदान दिनों दिन बढ़ायें। अब समय आ गया है जब हम सम्पूर्ण समाज व देश को अपना परिवार बनायें एवं हर पीड़ित, दुर्घटनाग्रस्त, बीमार व अपंग व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए निःस्वार्थ भाव से अपने देह अंगों का दान करने का संकल्प लें। यही सही मायने में मानवता की सेवा में एक प्रेरणादायी कदम होगा।

एक बार फिर मैं यहां उपस्थित देह-अंग दान संपन्न करने वाले सभी परिवारों का अभिनंदन करता हूं। साथ ही यहां उपस्थित देह-अंग दान का संकल्प लेने वाले प्रतिभागियों की भी प्रशंसा करता हूँ।

‘सर्वे सन्तु निरामयाः’ यानि सभी लोग स्वस्थ्य रहें। इसी आदर्श पर चलते हुए हम एक ‘स्वस्थ सबल भारत’ के निर्माण के लिए दृढ़ प्रतिज्ञा करें।

डाॅ. जितेन्द्र सिंह

सबसे पहले बहुत-बहुत आभार राष्ट्रपति जी का - अपने बहुमूल्य समय में से कुछ क्षण निकाले हैं इस देह दान/अंग दान के अभियान में जुटे हम सब बंधुओं के प्रोत्साहन के लिए। मुझे विश्वास है कि देश के मुखिया के ये कुछ क्षण जो हम समेट कर अपने साथ ले जाएंगे, आने वाले वर्षों में हमारे इस अभियान के लिए लम्बे समय तक प्रेरणा का स्रोत रहेंगे और हमारा मनोबल बढ़ाते रहेंगे। आलोक जी बधाई के पात्र - उनकी और उनकी टोली के प्रयास से ही आज का यह आयोजन सम्पन्न हुआ। और उनका आभार इसलिए भी कि मुझे भी इस कार्यक्रम में भागी बना कर पुण्य प्राप्ति का अवसर दिया है। अरुण जी पुस्तक के लेखक हैं। बधाई के पात्र हैं, क्यों कि बड़े ही गहरे शोध के बाद इस पुस्तक की रचना की गई है। इस विषय को लेकर इस ढंग की पुस्तक या तो पहली है या सर्वप्रथम की कुछ ऐसी पुस्तकें हैं जिनकी श्रेणी में इस पुस्तक का नाम आता हैं। सर्वाधिक आभार और बधाई इस पुस्तक के प्रकाशक प्रभात जी को। अरुण जी के प्रयास से बाकी लोगों को भी इस विषय पर लिखने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। जहां तक इस पुस्तक के विषय का संबंध है - आज अंग दान को लेकर कुछ भ्रान्तियां हैं। कुछ परम्परा का हिस्सा हैं, कुछ पीढ़ी दर पीढ़ी विश्वास का हिस्सा हैं। रुढ़िवाद का हिस्सा भी हो सकती हैं, परन्तु सर्वाधिक भ्रांतियां वैज्ञानिक सूझबूझ कम होने के कारण हैं। आज भी जब हम ग्‍लोबल दुनिया में रहते हैं, बहुत से ऐसे लोग हैं जो अंग दान करना चाहते हैं, परन्तु वह कहां जाएं? व्यवस्था नहीं। व्यवस्था है तो सरल नहीं। तीस वर्ष पहले मैं एम.डी. करके निकला तो इच्छा हुई नेत्र दान करूं। आपको आश्चर्य होगा कि पूरे उत्तर भारत में नेत्र दान का एक भी केन्द्र नहीं था। दिल्ली में टाइम्स आॅफ़ इण्डिया के दफ्तर में ‘टाइम्स आई फाउन्डेशन सेल’ नाम से एक केन्द्र का पता चला और हम उनसे जुड़े। मुझे विश्वास है कि इस कार्यक्रम के माध्यम से हम सभी संस्थाओं के और स्वास्थ्य मंत्रालय के सामने भी अपनी बात और अधिक आग्रहपूर्वक रखने में सफल रहेंगे। मुझे विश्वास है कि आलोक जी के इस प्रयास से, पुस्तक के माध्यम से और स्वास्थ्य मंत्रालय के सम्पर्क से इस अभियान को भी गति मिलेगी। जीवन में सबसे बड़ा दान यदि कोई है तो ये अंग दान है। जीवन काल समाप्त होने पर यदि हम अपने अंग का दान करके जाते हैं, दूसरे के लिए शायद वह उपहार हो, उससे भी अधिक अपने ऊपर भी बहुत बड़ा उपकार है। जीवन के आखिरी पल में, आखिरी सांस लेते हुए किसी इंसान के लिए इससे बड़ा और कोई संतोषजनक अहसास क्या हो सकता है कि मेरे मरने के बाद मेरी आंखों से कोई और देख सकेगा या मेरा दिल किसी और के सीने में धड़केगा अथवा मेरे मरने के बाद मेरा रक्त किसी और की धमनियों में दौड़ेगा......धन्यवाद।

श्री आलोक कुमार

आज सौभाग्य और आनंद का विषय है कि भारत के मुखिया, हमारे राष्ट्रपति देह दान/अंग दान के इस कार्य को अपना आशीर्वाद देने के लिए यहां पधारे हैं। यहां बैठे लोगों में 100 से अधिक लोग ऐसे हैं जिन्होंने इन 20 वर्षों में अपने परिवार से किसी के विदा होने के बाद उसकी देह या अंगों का दान किया है। देह दान/अंग दान का संकल्प करके हम वैदिक प्रार्थना को ही सार्थक करते हैं। समस्त जगत निरामय हो, हम स्वस्थ - सबल भारत बनाएं, जीवन भर इसके लिए पुरुषार्थ करें और हमारे जाने के बाद जो मिट्टी बच जाती है उसको भी सबल भारत के यज्ञ के लिए समर्पित कर दें। जब कोई देह दान का संकल्प कर रहा होता है उस समय उसे सहज यह समझ आ जाता है कि वह देह का दान कर रहा है, वह स्वयं वह देह नहीं है, वह देह से अलग है...देह में रहने वाला देही। वह पंच तत्वों का शरीर नहीं है.... वह शुद्ध-बुद्ध-मुक्त आत्मा है। इस तरह देह दान का संकल्प इस आध्यात्मिक जागृति को उसके मन में पैदा करता है। देह दान और अंग दान के संकल्प के बाद .... यह शरीर और यह अंग दान की हुई वस्तु होने के कारण हमारा दायित्व हो जाता है कि जब तक हम जीवन में इसका उपयोग कर रहे हैं तब तक हम सकल अंगों को स्वस्थ रखें....हम स्वयं इस देह के ट्रस्टी हो जाते हैं। इसलिए मैं कहता हूं कि देह दान/अंग दान केवल भारत की आवश्यकताओं को पूरा करने वाली बात नहीं है, यह एक गहन आध्यात्मिक आंदोलन है। हमने राष्ट्रपति से प्रार्थना की कि वह हमारे कार्यक्रम में आएं। चर्चा होते-होते यह हो गया कि राष्ट्रपति भवन में ही अपना कार्यक्रम कर लें। राष्ट्रपति बहुत सारी यूनिवर्सिटीज़ के कुलपति हैं। जहां वह कार्यक्रम में जाते है, राष्ट्रपति कार्यालय से पूछा जाता है कि क्या यहां रक्त दान शिविर हो सकता है, क्या यहां अंग दान का संकल्प लिया जा सकता है। .... उनके यहां आने से व सहजता से ही जितेन्द्र सिंह जी के भी यहां आ जाने से मुझे विश्वास है कि इनके आशीर्वाद से यह आंदोलन गति पकड़ेगा। आज सब इस दान को करने के लिए आगे आ रहे हैं। यहां एक बहन बैठी हैं जिनके पति एक दुर्घटना में सिर के बल गिरे और चले गए। डाॅक्टर ने कहा कि ब्रेन डेड हैं, हार्ट दान कर दो। ससुराल से कोई नहीं था, मायके से कोई नहीं था, अकेले को फैसला करना था, दो छोटे बच्चे थे। अकेली उस बहन ने फैसला किया कि, ‘‘मैं अपने पति की देह को दान करती हूं।’’ उनका दिल भोपाल के एक सज्जन को लगा। कुछ समय बाद उनके परिवार में कहीं शादी थी। उन्हें भी बुलावा आया। फेरों के समय यह बहन वहां नहीं थीं। उस सज्जन ने ढूंढा तो देखा कि पीछे के एक कमरे में बैठी हैं। कहा, ‘चलो फेरे हो रहे हैं।’ इस बहन ने कहा, ‘मैं विधवा हूं। नहीं चल सकती। अपशगुन होगा।’ उन्होंने कहा, ‘तू बैठेगी तो फेरे होंगे, तेरे पति का दिल मेरे सीने में धड़क रहा है..... तेरे बैठने से बड़ा शगुन मेरे घर में कोई हो नहीं सकता।’ अगर सारे दिन का भी समय बोलने के लिए मिले तो अंग दान/देह दान करने वाली ऐसी ही विशिष्ट घटनाएं बताई जा सकती हैं। हर घटना विचित्र है। प्रभु हमें आशीर्वाद दें कि हम भारत को निरामय बना सकें।