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उस्मानिया में पहला यकृत प्रत्यारोपण

हैदराबाद में सरकार द्वारा संचालित एक अस्पताल उस्मानिया जनरल अस्पताल (ओजीएच) में शल्यक्रिया द्वारा यकृत का पहली बार सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया गया। इस प्रत्यारोपण के साथ तेलंगाना में ओजीएच, अंग प्रत्यारोपण शल्यक्रिया करने वाला न केवल पहला सरकारी अस्पताल बन गया है, बल्कि इस तरह के प्रत्यारोपण के इंतज़ार में बैठे हज़ारों गरीब लोगों के मन में उसने आशा की किरण जगा दी है।

इससे पहले विशेषज्ञतायुक्त अग्रणी अस्पतालों जैसे ग्लोबल हाॅस्पिटल्स, केयर हाॅस्पिटल, केआईएमएस, अपोलो, यशोदा और एनआईएमएस को ‘‘एकमात्र ऐसे अस्पतालों के रूप में माना जाता था जो अत्यधिक नाज़ुक शल्यक्रियाएं कर सकते हैं और गरीब मरीज़ों की पहुंच से बाहर हैं। लेकिन ओजीएच के प्रतिभावान सरकारी चिकित्सकों के दल ने साबित कर दिया कि विकसित शल्यक्रियाओं के ऐसे कदमों को सरकारी अस्पताल भी सफलतापूर्वक उठा सकते हैं।

इस पहली यकृत शल्यक्रिया का विवरण यह है कि एक गरीब मरीज़ यकृत की गंभीर बीमारी से पीड़ित था और उसे तत्काल एक यकृत दानकर्ता की ज़रूरत थी। यह पता लगने के बाद ओजीएच के चिकित्सकों ने तेलंगाना के जीवनधन संगठन के माध्यम से दूसरे अस्पतालों को अनुकूल दानकर्ता के लिए सतर्क कर दिया। सौभाग्य से, जीवनदान संगठन को इनुकोण्डा ममता नाम की दानकर्ता मिल गई। वारंगल ज़िले में सरूरनगर की वासी इनुकोण्डा ममता के परिवार के सदस्य उनकी स्थिति को देख कर एकदम घबरा गए और उन्हें लेकर तुरंत एक स्थानीय अस्पताल की तरफ दौड़ पड़े। ममता की हालत में कोई सुधार न आ सका और उन्हें हैदराबाद के बनजारा हिल्स स्थित केयर हाॅस्पिटल्स में स्थानांतरित कर दिया गया।

सत्तावन साल की इस महिला को हैदराबाद के केयर अस्पताल में मस्तिष्क मृत (ब्रेन डेड) घोषित किया गया। दानकर्ता के रिश्तेदारों को भलिभांति समझाने के बाद जीवनदान संगठन के संचालकों ने उनकी सहमति से इनुकोण्डा ममता की मृत देह से यकृत, दोनों गुर्दे, हृदय के कपाट (वाल्व्स) और दोनों आंखों की काॅर्निया सुरक्षित निकाल लिए। दान में मिले यकृत की प्रतीक्षा कर रहे ओजीएच के शल्यचिकित्सकों के दल ने क्षण-क्षण मौत के करीब जा रहे उस गरीब मरीज़ में ममता के यकृत का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण कर दिया। इसमें उन्होंने 10-15 घंटे तक लगातार शल्यक्रिया की बारीकियों को अंजाम दिया और एक ज़िन्दगी को बचा लिया।

इससे पहले उस्मानिया जनरल अस्पताल के शल्यचिकित्सक गुर्दे का प्रत्यारोपण कर चुके थे जो उन्हें मृतदेह (केडवर) से प्राप्त हुआ था, और इस नवीनतम यकृत प्रत्यारोपण ने उस्मानिया के चिकित्सकों की कुशलता को किसी भी काॅर्पोरेट अस्पताल के मापदण्डों की बराबरी पर प्रमाणित कर दिया। ओजीएच के एक युवा कनिष्ठ चिकित्सक का कहना है, ‘‘इस प्रत्यारोपण ने न केवल गरीब मरीज़ों में आशा की किरण जगा दी है, बल्कि गरीब मरीज़ों के हित में ऐसे अत्याधुनिक कदमों को उठाने के लिए अस्पताल के चिकित्सक समुदाय के भरोसे के स्तरों को भी बढ़ा दिया है।’’

कुल मिला कर जीवनधन की भूमिका प्रशंसनीय है। तेलंगाना में जीवनधन संगठन की स्थापना 2013 में हुई थी। तभी से यह जागरूकता कार्यक्रमों में यह बहुत ही सक्रियता से योगदान कर रहा है और जनसाधारण मे अंगदान को प्रोत्साहन देने तथा दान में मिले अंगों को सरकारी अस्पतालों को उपलब्ध कराने वाली मुख्य संस्थान के रूप में उभरा है।

वर्तमान में देश में अधिकांश अंग दान स्वेच्छा से होते रहे हैं या परामर्शदाताओं द्वारा समझाने, संतुष्ट करने के बाद होते रहे हैं। स्वास्थ देखभाल विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार के लिए यह ज़रूरी हो गया है कि वह राज्य और केन्द्र दोनों स्तर पर, पूरे देश में मस्ष्कि मृत लोगों की पहचान के लिए नया कानून लाए और तदनुसार अंग दानकर्ताओं तथा ज़रूररतमंद मरीज़ों का डाटाबेस तैयार करे।