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देहदानियों का 34वाँ उत्सव - 13 मई 2018

देह दान एवं अंग दान - मुक्ति में बाधक न होकर मोक्ष पाने का साधन
देहदानियों के 34 वाँ उत्सव में 125 संकल्प पत्र भरे गए

मध्य क्षेत्र का देहदानियों का उत्सव रविवार 13 मई, 2018 को मनाया गया। समय था प्रातः 9 बजे और स्थान था ड्रीम पैलेस बैंकट हाॅल, शक्ति नगर, दिल्ली। यह दधीचि देह दान समिति का 34वां उत्सव था। इसमें लगभग 125 महानुभावों ने संकल्प पत्र भरे एवं ऐसे 27 परिवारों को सम्मानित किया गया जिनके यहां से देह एवं अंग दान हुए।

कार्यक्रम के संयोजक श्री मनोज कुमार जिन्दल थे। मंच संचालन किया श्री सुमन गुप्ता ने, जो समिति के मंत्री भी हैं।

पंजीकरण एवं अल्पाहार के बाद मंचीय कार्यक्रम दीप प्रज्ज्वलन से शुरू हुआ। सर्वप्रथम श्रीमती डाॅ. शीतल जोशी (सहायक प्रोफेसर, लेडी हार्डिंग मेडिकल काॅलेज) ने पीपीटी के माध्यम से देह दान एवं अंग दान पर वैज्ञानिक अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता के बारे में बताया। किन परिस्थितियों में किन-किन अंगों का दान एवं प्र्रत्यारोपण सम्भव है - इसकी भी विस्तार से जानकारी दी। देह दान का महत्व बताते हुए डाॅ. जोशी ने कहा कि सर्जन्स को मृत देह (केडेवर) पर नई तकनीक से आॅप्रेशन करने का भी अभ्यास कराया जाता है।

पण्डित सुनील शास्त्री ने महर्षि दधीचि को भारतीय संस्कृति का महान एवं प्रथम देहदानी बताया, जिन्होंने दैविक संस्कृति की रक्षा के लिए ब्रह्मा जी के कहने पर अपनी अस्थियों का दान करना स्वीकार किया। पण्डित सुनील शास्त्री ने कहा कि अंग दान करने से बड़ा कोई पुण्य नहीं है। अतः, यह मुक्ति में बाधक न होकर मोक्ष पाने का साधन है।

श्री आत्म प्रकाश अग्रवाल ने अपने अनुभव सांझा किए और बताया कि उनके पुत्र को मस्तिष्क सम्बंधी बीमारी थी, जिसके लिए डाॅक्टरों का कहना था कि इस पर अधिक अनुसंधान नहीं हो पाया है। इस कारण से, पुत्र के देहान्त के बाद उन्होंने उसकी देह का दान करने का निर्णय लिया, जिससे अनुसंधान हो सके एवं समाज को लाभ मिल सके।

अध्यक्ष श्री हर्ष मल्होत्रा ने समिति के विभिन्न क्रिया-कलापों एवं समिति की रचना तथा कार्यशैली के बारे में जानकारी दी।

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भाजपा एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री श्याम जाजू ने कहा कि दधीचि देह दान समिति समाज के लिए ही नहीं अपितु मानवता के लिए भी अति महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। भारत में प्रति वर्ष 5 लाख लोग, प्रत्यारोपण के लिए अंगों की कमी से मृत्यु का ग्रास बन जाते हैं। अतः भारत सरकार को इस कमी को दूर करने के लिए कानूनी प्रक्रिया को सरल करना चाहिए। समाज को भी रूढ़िवाद छोड़ कर अंग दान एवं देह दान की आवश्यकता को स्वीकार कर लेना चाहिए।

श्री मनोज जिन्दल ने धन्यवाद देते हुए सभी को भोजन के लिए आमंत्रित किया।