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"हम जीतेंगे - Positivity Unlimited" व्याख्यानमाला

क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।

 पूज्य शंकराचार्य विजेंद्र सरास्वती महाराज जी

आज विश्व में महामारी की वजह से एक अति संकट की स्थिति है. भारत में एक साल पहले भी ये कष्ट आया था. प्रजा की मेहनत से, सहयोग से, सबकी सहानुभूति से, इस संकट से विमोचन मिला. अभी इस संदर्भ में दोबारा कुछ संकट शुरू हुआ है, अति वेग से शुरू हुआ है. उस संकट से विमोचन होना चाहिए. इस संकट के विमोचन के संदर्भ में संकट मोचन हनुमान जी का वाक्य हमको स्मरण करना बहुत उपयोगी होगा. वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी कहते हैं. दुख होता है, संकट होता है, फिर भी अपना जो मनोधैर्य है, मन में जो हिम्मत है वो छोड़ना नहीं, प्रयत्न तो करना है.

एति जीवंतमानंदः नरं वर्ष शतादपि

ये प्रयास करने वाला व्यक्ति है जो विश्वास के साथ मेहनत करेंगे, उनको फल मिलेगा ही, वे सफल होंगे। एक साल के पहले के संकट में अनेक भाषा, अनेक प्रांत के लोगों ने सहमति और ऐकमत्य के साथ काम किया, उसका परिणाम भी अच्छा अनुकूल मिला. ऐसे अभी जो संकट है उससे मुक्ति के लिए, संकट निवारण के लिए, संकट विनाश के लिए, दो प्रकार की कोशिश जरूरी है. एक तो प्रार्थना, मंत्र द्वारा, स्तुति द्वारा, हनुमान चालीसा द्वारा, अपने सदाचार नियम-पालन के द्वारा. दूसरा जो अपना आयुर्वेद है, जो नई चिकित्सा पद्धति है, पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति है, उसके उपयोग से. ऐसे दोनों प्रकार की सहायता से इस संकट का विमोचन होगा. इसमें धैर्य का भी, आत्मविश्वास का भी एक स्थान है, महत्वपूर्ण स्थान है. राम जी ने युद्ध किया, रावण को पराजय किया, विजय प्राप्ति हुई. इस बीच में सीता जी का आत्मविश्वास बढ़ाने की भी जरूरत थी. सीता जी अशोक वाटिका में वृक्ष के नीचे बैठी थीं, तो हनुमान जी ने जाकर आत्मविश्वास की प्रस्तावना की. सूर्यवंश के बारे में स्तुति की, जो सीता देवी ने मधुर वाणी में सुना. तब सीता देवी के मन में जो भाव था, मतलब अपना शरीर भी छोड़ देंगी ऐसी स्थिति में चली गईं थी, तब हनुमान जी ने आत्मविश्वास का संचार किया. इस देश में आत्मविश्वास का संदेश हनुमान जी ने दिया है.

इसलिए सीता देवी ने अपने जीवित को रखा था. बाद में, राम जी को युद्ध में श्रेय प्राप्ति होने के बाद सीता राम जी का संगम हुआ. इसलिए जो धैर्य है, आत्मविश्वास है, थोड़ा रुकावट हो तो भी, थोड़ा संकट हो तो भी, संकट से हम बाहर आ सकते हैं, आएंगे. ऐसे करने के लिए व्यक्तिगत विश्वास की भी जरूरत है, सामूहिक दृष्टि से उस माहौल को बनाने की भी जरूरत है. जैसे भगवत गीता में –

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।

क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।

ऐसे श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को उपदेश दिया है. क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप.... ह्दय में अपने संकल्प में जो दौर्बल्य है, मतलब जितना धैर्य चाहिए उसमें जो कमी है, उसको दौर्बल्य बोलते हैं, उस दुर्बलता को छोड़ना. और विश्वास के साथ, धैर्य के साथ उठो. जो अर्जुन है, महावीर है आपको ये उचित नहीं है.

ऐसे भारतीय समूह को आज के संदर्भ में प्रत्यन भी करना, मेहनत भी करना, प्रार्थना भी करना, उसके साथ-साथ सबसे पहले धैर्य के साथ, आत्मविश्वास के साथ, समाज के प्रति, सरकार के प्रति, सत्संग के प्रति विश्वास रख करके इस अवांतर प्रणय जैसी ये स्थिति जो है, उससे बाहर विमोचन के लिए पूर्ण मतलब समग्र मेहनत के साथ, कोशिश के साथ, ये प्रयास होना चाहिए. आज के संदर्भ में बहुत लोग बहुत सेवा कर रहे हैं, सरकार हो या व्यक्तिगत लोग हों, या संस्था, या स्वछंद संस्था हों. सब ऐसे बहुत काम कर रहे हैं. उसके परिणाम स्वरूप प्रगति भी हम देख रहे हैं. विदेश के लोग भी वसुधैव कुटुंबकम् की दृष्टि के अनुसार बहुत मेहनत भी कर रहे हैं, बहुत सहायता कर रहे हैं.

प्राणेश्वरी प्राणदात्री प्राणदा प्राणरूपिणी, ऐसा ललिता सहस्त्रनाम में कहा है. ऐसी भगवती देवी, श्री कामाख्या देवी की अनुकंपा से लोगों का स्वस्थ जीवन होना, दीर्घायु होना, बीमारी दूर होना, बीमारी से मुक्त होना, स्वस्थ भारत के लिए और विश्व में स्वास्थ्य होने के लिए, सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः. सर्वे भद्राणि पश्यन्तु

ये धर्म का संदेश है. इसलिए भाषा और प्रदेश, के संकुचित भाव से बाहर निकलकर मतलब नियमित देशभक्ति जरूरी है, देशभक्ति के साथ-साथ विश्व शांति के लिए भी हमारा प्रार्थना चाहिए. लोग जिस भू-खंड में, जिस प्रदेश में, निवास करने वाला व्यक्ति हो, जिस प्रकार के विश्वास का अनुसरण करने वाला हो, मानव मात्र के कल्याण के लिए सभी एक मत होकर के संगच्छध्वं सवंद्ध्वं......... समानी व आकूति: समाना ह्र्दयानि व: .....ऐसे विश्व शांति के लिए हमारा प्रयास हो. बहुत संकट से अभी तक अपना भारत बाहर आया है. ऐसे देशभक्ति के साथ, ईश्वर भक्ति के साथ, सदाचार सत्संकल्प के साथ, इस समस्या से भी बाहर आकर, और विमोचन प्राप्ति करके,

बुद्धिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वमरोगता ।

अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनूमत्स्मरणाद्भवेत्

ऐसे हनुमान जी जो अपना आदर्श हैं, सेवा के प्रमुख, रामदूत हैं, उनके संदेश के साथ अपने भारत का कल्याण हो, विश्व में शांति हो, सब लोग सुखी रहें. इस दृष्टि के साथ सब लोग सत्संकल्प के साथ काम करें.....हर-हर शंकर, जय-जय शंकर.