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"हम जीतेंगे - Positivity Unlimited" व्याख्यानमाला

सबमे जोत-जोत है सोई, तिसदे चानण सबमे चानण होई

महंत संत ज्ञानदेव सिंह जी
निर्मल अखाड़े के पूज्य श्री महंत)

आज हमारे देश में कोरोना नाम का संक्रमण व्याप्त है. केवल भारतवर्ष में नहीं संपूर्ण विश्व में यह संक्रमण काल चल रहा है. परंतु इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है. मनोबल गिराने की आवश्यकता नहीं है. आप क्या हैं, यह भारत भूमि है. ऋषियों की, मुनियों की, तपस्वियों की, ज्ञानियों की, गुरुओं की भूमि है. हमारे देश में जब-जब संकट आया है, जब जब आपदाएं आई, हमारे ऋषियों-मुनियों ने, गुरुओं ने उनका निस्तारण किया और संकट काल चला गया. जो भी वस्तु संसार में आती है, वह सदा स्थिर नहीं रहती. दुःख आया है, वह चला जाएगा.

इसलिए घबराने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है शुद्धि की. विशेषकर क्योंकि जो भी संक्रमण होता है वो प्रायः करके जब शरीर या मन अशुद्ध होता है तब शरीर में रोग आता है. वो बाहर की अशुद्धि होती है तो उसमें रोग आ जाता है और मन जब कमजोर हो जाता है तो उनका मानसिक बल भी दुर्बल हो जाता है. इसलिए शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यकता है, हमारे ऋषियों मुनियों ने, हमको तो हमारे माता पिता ने जन्म से सिखाया. हम लोगों का जन्म गांवों का जन्म है. गांवों में पहले बाहर जंगल दिशा में मैदान जाते थे. बच्चे बाहर जाते थे, बाहर से आकर वे हाथ धोते थे तो घरों में पीली मिट्टी रखी जाती थी, पीली मिट्टी से हाथ धोए जाते थे. पहले हाथ धोने नहीं आते थे तो माता हाथ पकड़ कर हाथ धुलाती थी, ऊपर से एक व्यक्ति पानी डालता था तो हाथ शुद्ध होते थे. हमको कुल्ला करना नहीं आता था, तो कुल्ला कराती थी. बड़े हुए तो हम अपने आप करने लगे. ये हमारा जन्मकाल है, इसलिए सबसे पहला गुरु कौन है, माता है. गुरुदेव माता. और हमारे वैदिक मंत्र हैं मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव, आचार्य देवो भव. जो माता पिता की शिक्षा पूर्ण रूप से प्राप्त कर लेता है वो संसार में कभी असफल नहीं होता. हमको माता ने यह सब सिखाया.

हमको याद है, बचपन में मिट्टी के घड़ों में पानी होता था, दूर गावों कुओं से बर्तनों में भरकर जल लेकर आते थे. हमने कुछ खाकर झूठा हाथ घड़े को लगा दिया तो माता ने हमें थप्पड़ मारा, तमाचा मारा. क्यों, घड़ा झूठा कर दिया. हमारे सामने ही घड़ा तोड़ दिया, दूसरा घड़ा आया. हमको ज्ञान हुआ कि हमें आगे से ये गलती नहीं करनी है. बाहर से शौच करके आए और अचानक शरीर से हाथ लगा दिए तब गाल पर लगी. तब शिक्षा मिली कि मिट्टी से हाथ मांजो, एक बार नहीं, दो बार नहीं, तीन बार नहीं, चार बार नहीं, पांच बार मांजो.

यही तो आज हमारे मोदी जी हमें सिखा रहे हैं, डॉक्टर लोग सिखा रहे हैं कि हाथ धो. हमें तो यह बचपन से सिखाया है. हमारी संस्कृति, भारतीय संस्कृति, सनातन संस्क़ृति बचपन से ही शिक्षित कर देती है कि हमको किस प्रकार रहना है.

आहार शुद्धौ सत्व शुद्धि. यदि हमारा आहार भी शुद्ध होगा तो हमारे में सत्वगुण आएंगे. और यदि सत्वगुण होंगे तो हम उस परमेश्वर का चिंतन करेंगे. और उस परमेश्वर का चिंतन करने के कारण हम अनर्थ का चिंतन नहीं करेंगे. यह हमें पहले से सिखाया गया है. हमको तो यह भी बतलाया गया है कि लघुशंका किस दिशा में करनी है, शौच किस दिशा में जाना है. कितनी बार, कब-कब हाथ-पैर धोने हैं. यही हमको धर्म स्थलों में सिखाया है. हम गुरुद्वारे में जाते हैं, वहां की व्यवस्था ये है कि गुरुद्वारे के द्वार पर शुद्ध पानी चलाया जाता है जिसको चरण पादुका बोलते हैं. वहां पर जल चलता रहता है. पहले हाथ धो, कुल्ला करो और उसके बाद पैर धोकर हरि मंदिर में प्रवेश करो. क्योंकि यदि आप अशुद्ध, अपना जूता चप्पल पहनेंगे तो उससे जहां भी आप पैर रखेंगे वहां का वातावरण अशुद्ध होगा.

उसके लिए हमारे पूर्वजों ने व्यवस्था बनाई कि पहले जल में पैर धोकर जाओ. और दंडवत करो, उससे हमारा प्राणायाम, सूर्यनमस्कार हो जाता है. इसलिए हमारे गुरुओं ने, हमारे माता पिता ने हमको यह शिक्षाएं दी हैं. यदि हम उसका पालन करेंगे तो कोई भी संकट हमारे पास नहीं आ सकता. कोई भी बीमारी हमारे पास नहीं आएगी. बचपन में हमारे घरों,. गांवों में कितने ही नीम के वृक्ष होते थे. बच्चों को सिखाते थे कि नीम की दातुन करो. उस समय तो यह पेस्ट वगैरह तो कोई जानता ही नहीं था. हम लोगों ने भी नहीं जाना था. ये तो जब हम शहरों में आए तब हमको पता चला. और कितना साधारण प्रयोग है. जहां पर गांव में कुछ भी नहीं, वनवासी-आदिवासी क्षेत्रों में भी, केवल नमक से ही मंजन करके मुख शुद्धि हो जाती है. हम प्रकृति से दूर हो गए हैं, तो इसीलिए हम पर ये आपदाएं आ रही हैं. हम उन्हीं प्राकृतिक नियमों को अपनाएं तो हमारे पास कोई भी संक्रमण नहीं रह सकता और यदि कोई संक्रमित हो भी गया है तो जो आज हमारे डॉक्टर, वैद्य लोग, हमारे बड़े लोग हमको बता रहे हैं, हमारी सरकारें जो हमको कह रही हैं उनका यदि विधि पूर्वक पालन करेंगे तो हम संक्रमण से बच जाएंगे. मृत्यु हमारे पास नहीं आ सकती, मृत्यु हमारा क्या बिगाड़ेगी? मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकती में जहां रहूंगा बिगड़े कुछ नहीं. आपतो अमृत के पुत्र हो, मृत्यु आपके नजदीक नहीं आ सकती. आत्मा तो शुद्ध, बुद्ध, मुक्त है

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।

अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे।

गीता में भगवान कह रहे हैं, इसलिए निराश होने की आवश्यकता नहीं है. यदि आप संक्रमित हो गए हैं तो भाई 14 दिन के लिए आप कोपभवन में चले जाइये. कोप भवन का मतलब है कि आप एक कमरे में चले जाइये.

मुझे याद है कि मुंबई में हमारे गुरुजनों के सेवक का फोन आया कि महाराज आपकी पुत्रवधू संक्रमित हो गई है. मैंने कहा फिर क्या कर रहे हैं. तो उन्होंने कहा कि वो 14 दिन से कमरे में बंद है. उसे भोजन बनाकर दे दिया जाता है खिड़की के रास्ते से, वो अपने वस्त्रों को अपने-आप धोती है. भोजन करके बर्तनों को धो करके रख देती है, हम लोग दोबारा उनको मांजते हैं. इस प्रकार से यदि कोई संक्रमित हो जाता है तो वो अध्यात्म परमात्मा का चिंतन करे, गीता का पाठ करे, गुरूवाणी का पाठ करे. अपने शरीर को स्वस्थ रखे, मन को स्वस्थ्य रखे. मन जीते जग जीते. यदि आपका मन स्वस्थ्य है तो आप स्वस्थ्य रहेंगे. आप पर कोई प्रभाव नहीं होगा. और मुझे पता चला कि वो बच्ची अब बाहर है, सब कार्य कर रही है. ऐसे नियमों का पालन प्रत्येक हमारे शिष्य करते हैं. पता चला उनको बुखार आ गया और वो संक्रमित हो गए. उन्होंने कहा महाराज मैं क्या करूं. हमने कहा कुछ करने की जरूरत नहीं, आप अपना योगाभ्यास करिए, प्राणायाम करिए, तो उन्होंने अभ्यास किया. उनके ऑक्सीजन लेबल भी कम था, लेकिन यदि आप प्राणायाम करेंगे, अनुलोम-विलोम करेंगे और अपने नजदीकी वैद्य के संपर्क में, डॉक्टरों के संपर्क में आकर उनसे अल्प औषधि लेंगे तो आपको डरने की आवश्यकता नहीं है, आप स्वस्थ्य हो जाएंगे. ऐसा ही हुआ और सबसे सुंदर तो बात ये है कि अपना आहार आप स्वस्थ रखिए. आप अच्छा और हल्का भोजन लें. और गो दुग्ध लें और उसमें उसके साथ औषधि जैसे तुलसी पत्र, दालचीनी, अजवायन, ये सब चीजें डाल करके मुलैठी आदि डालकर काढ़ा बनाएं और उसका पूर्ण पान करें. आप निश्चित रूप से स्वस्थ्य हो जाएंगे और स्वस्थ्य तो आप हैं ही, क्योंकि वैसे यदि आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो ये शरीर मिला है. पर, ये शरीर किसी का भी संसार में रहा नहीं है. ये अवश्य एक दिन जाएगा. जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च....

जो उपजो सो विनस है परयो आज के काल

नानक हर गुण गायलै, छाड़ जगल जंजाल.

इसने तो जाना है और जो जाने वाला है वो रुक नहीं सकता और जो अविनाशी है वो जा नहीं सकता. इसलिए आत्मा तो अजर है, अमर है, शाश्वत है, नित्य है, अक्षुण्ण है. माता मदालसा ने भी तो अपने पुत्रों को यही कहा –

शुद्धोसि बुद्धोसि निरंजनोऽसि, संसारमाया परिवर्जितोऽसि

संसारस्वप्नं त्यज मोहनिद्रामदालसोल्लपमुवाच पुत्रम्॥

इसलिए हम शुद्ध हैं, बुद्ध हैं, हम मुक्त हैं, स्वस्थ्य हैं. अपने मन में कभी कमजोरी मत लाओ.

सेनेटाइजर से बार-बार हाथ धो, पैरों को धो, दिन में यदि आप बाहर जाते हैं तो गर्म पानी से आकर स्नान करो. हमारे महात्माओं ने, हमारे गुरुओं ने, बचपन से ही हमको यही समझाया है कि प्रतिदिन वस्त्र बदलने हैं. बाहर यदि जाना है तो बाहर से आकर सभी वस्त्रों को बदलना है, गर्म पानी से स्नान करना है. और आपके पास तो ऐसी-ऐसी प्राकृतिक औषधियां हैं, भारत में सबसे बड़ी औषधि तो नीम है. नीम की पत्ती को उबाल करके आप उससे नहाइए तो त्वचा के सब रोग दूर हो जाएंगे. नीम की पत्ती को तोड़ करके खाइए, करेले को खाइए आपकी शुगर दूर हो जाएगी. दालचीनी, लवण, अजवायन, मेवों का सेवन करेंगे तो आपमें आत्मशक्ति भी बढ़ेगी. आपको ये दुर्लभ देह प्राप्त हुई है. दुर्लभ देह पाई बड़भागी, नाम न जपे ते आप..... और नाम का स्मरण करिए प्रभु का, स्मरण करिए की आपको स्वस्थ शरीर प्राप्त हुआ है. इस स्वस्थ शरीर के द्वारा हम उस परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं. क्योंकि शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्..... यदि आपका शरीर स्वस्थ है, मन स्वस्थ्य है तो आप धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, ये सब प्राप्त कर सकते हैं. घबराने की आवश्यकता नहीं है, मन को कमजोर करने की आवश्यकता नहीं है, उठो-जागो और अपने स्वरूप को पहचानों.

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥

जाग ल्यो रे मना, जाग ल्यो, क्यो गा फल सोया, जो तन उपजयो संगी सो भी साथ न होया. ये शरीर साथ जाने वाला नहीं है, आप अपने मन को क्यों कमजोर करते हैं. आप उठो, जागो, उतिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत.....आप उस अमृत के पुत्र हो, आप कभी मर नहीं सकते, आप तो अजर हैं, अमर हैं, शाश्वत हैं. इसीलिए उस परमपिता परमात्मा को पहचानो जो आपके अंदर है, वो सबमे है.

अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बंदे,

एक नूर ते सब जग उपजया कौन भले को मंदे,

सबमे जोत-जोत है सोई, तिसदे चानण सबमे चानण होई

गुरूवाणी ये कह रही है, महापुरूष ये कह रहे हैं, वेद शास्त्र कह रहे हैं. और अपना ख्याल रखें, जान है तो जहान है. हमारी सरकारें कह रही हैं और सबसे बड़ी तो शिक्षा हमको अपने बड़ों से लेनी चाहिए. मातृ-पितृ भक्त होना चाहिए. मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः, अतिथि देवो भवः, आचार्य देवो भवः और सबसे बड़ी बात तो ये है कि जब हमारे प्रधानमंत्री जो कार्य करते हैं, पहले माता को प्रणाम करके उनकी आज्ञा लेकर करते हैं. तो कम से कम ये शिक्षा तो उनसे प्राप्त करो. आज हमारे माता पिता को वृद्धाश्रमों में भेज रहे हैं. इस परंपरा को तोड़ो, छोड़ो. और जो हमारे ऋषियों मुनियों की परंपरा है उस परंपरा का पालन करो...वो कहां से प्राप्त होगी. गौ माता का आदर करो, गौ दुग्ध पीयो. देसी गौ का दूध पियोगे, क्योंकि जिसने माता का दूध पीया है, उसको कोई भी दुश्मन हरा नहीं सकता. वह खम्म ठोककर कहता है कि आजा मां का दूध पीया है तो...ये आप लोगों ने मां का दूध पीना छोड़ दिया है, इसलिए आपका मन कमजोर हो रहा है.

जिसने मां का दूध पीया होता है वो कभी माता का, अपने मातृभूमि का, अपने देश का, अपने राष्ट्र का अपमान सहन नहीं कर सकता. इसलिए आवश्यकता है गौ माता का आदर करने की, जन्म देने वाली माता का, अपने बुजुर्गों का आदर करने की. हमने अपने आचार्यों का, गुरुजनों का आदर करना छोड़ दिया है, जिनसे हमने शिक्षा ली है तो यह प्राकृतिक प्रकोप तो होगा ही.

परन्तु, जब आप अपने स्वरूप में जाग जाएंगे, अपने माता-पिता, गुरुजनों का आदर करेंगे, अपने शास्त्रों को पढ़ेंगे और अपने अव्यवस्थित खान-पान को छोड़ेंगे तो आप स्वस्थ रहेंगे और जो स्वस्थ रहेगा वही उस परमपिता परमात्मा को प्राप्त करेगा. और आप निश्चित अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचेंगे. यह हम आपको विश्वास के साथ कह सकते हैं कि आपको कोई कुछ नहीं कर सकता. आप तो सिंह के पुत्र हैं. एक कहानी हमने सुनी थी कि एक जंगल में एक शेरनी ने शावक को जन्म दिया पीछे शिकारी था, शेरनी का बच्चा नदी में गिर गया, और बाद में गडरिये ने बच्चे को पाल लिया. और अपने भेड़ बकरियों में मिला लिया. तो शेर का बच्चा उनमें रहता-रहता उन्हीं की तरह घास खाने लगा.

एक दिना वन में बसके, वनराज के नार ने नाहर जायो, और मिल गया, जिसको गडरिया को, उसको भेड़ों में रख दिया और दूध पियो, पुन घास चरायो...घास खाने लगा. एक दिन उसको कोई महापुरुष मिल गए. अरे, तू कहां घूम रहा है, तून कौन है, तेरा सरूर क्या है?

तो वह कहता मैं तो भेड़ हूं. तो महापुरुष ने कहा कि नहीं, तू सिंह है. दूध पियो, पुन घास चरायो....ऐसे ही हम वर्तमान में अपने स्वरूप को भूल गए हैं. तो ऐसे ही अपने आत्म ज्ञान बिना...नर ब्रह्म ते जीव ते मूढ़ कहायो...मूर्ख बना हुआ है. अपने स्वरूप को पहचानो, उठो और जागो...

इतना ही हम आपको संदेश देते हैं कि ये बीमारी नाम की कोई चीज नहीं है. अब ये तो आई है तो कल जाने वाली है. सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चित दुःख भागभवेत.....नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला हो.

शांतिः शांतिः शांतिः