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आदि शंकराचार्य जयंती और कोरोना संकट

आलोक कुमार
संरक्षक - दधीचि देह दान समिति,
कार्याध्यक्ष - विहिप

28 अप्रैल मंगलवार को जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी की जयंती है I एकात्मता का सन्देश, मनुष्य मात्र की समता, इसका अध्यात्मिक आधार कि सब मनुष्यों में वही इश्वर रहते हैं, उन्होंने दिया था I कर्मकांड का विरोध किया था I अद्वैत ब्रह्म की पुनर्स्थापना की थी I श्रद्धाओं को दृड़मूल किया था I भारत को संगठित किया था I 

विश्व कोरोना से जूझ रहा है I नंगी आखों से अदृश्य एक छोटा वायरस पूरी मानवता को चुनौती दे रहा है I इसके पहले भी समाज ने बहुत सारे संकटों को झेला है I कभी अकाल पड़ता है, कभी अतिवर्षा होती है, कभी तूफान आता है, भूकंप होते हैं, ज्वालामुखी फटते हैं I परन्तु इस बार की चुनौती प्रकृति या ईश्वर के द्वारा नही लायी गई है I 

मनुष्य के विनाश का प्रयत्न करने वाले, कम से कम उसके साजो सामान इकठ्ठा करने वाले चीन में कैमिकल वेपन्स बनाने के लिए प्रयोग करने वाली प्रयोगशाला में से यह वायरस उचक और छिटक कर बाहर आ गया और दुनिया भर में फ़ैल रहा है I इसलिए इस बार यह प्रकृति का कोप नहीं है यह मनुष्य की दुष्टता की लीला हो रही है I 

अभी तक जब कभी विपदाएं आती थी तो पिछड़े और डेवेलपिंग देशो पर बड़ा प्रहार करती थी I इस बार अफ्रीका का नाम नही आ रहा, सब-सहारन देशो का नाम नहीं आ रहा I भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश भी इससे लड़ने में अपने आप को तैयार पाते हैं I इस बार का नुकसान कहाँ हो रहा है ?

हम देखें कि जो दुनिया के सिरमौर बनते हैं, जिनके जीवन में गति है; निरंतर हवाई जहाज के द्वारा यहाँ से वहां भागना; जिनके पास में प्रचंड कर्म है, जो संपन्न हैं, विश्व में लक्ष्मी की सम्पूर्ण सम्पदा अपने पास समेटने की होड़ लगाते हैं, जो प्रगत हैं, सुविधा और लक्ज़री के सब सामानों को अपने चारो ओर इकठ्ठा करके ऐश्वर्य का जीवन जीते हैं: जिनका आधिपत्य माना जाता है: विश्व को खेमों में बाँट करके अपने बल का, सामर्थ्य का प्रसार दिखाते है : वही बिलबिला रहे हैं I अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, ईटली, दुनिया की बादशाहत करने वाले देश इस वायरस के सामने लाचार खड़े हैं I 

तो फिर इससे बचाव कैसा हो ? हमारे भारत का अनुभव कैसा है ? क्या करना पड़ेगा बचने के लिए ? कोई दवा ? न तो; दवा तो कोई है नही I कोई वैकसीन ? न तो; वैकसीन भी नही बनी है I फिर क्या ? 

तो एक प्रगत जीवन के लिए जो आवश्यक समझा जाता है उस सब से विदड्रा कर लो I गति कम करो, भाग-दौड़ बंद करो, शांत हो जाओ, अपने घर में रहो, अपने परिवार के साथ रहो I घर में सीमाबद्ध हो करके। डिप्रैशन नही हो, इसके लिए थोडा ईश्वर को स्मरण करो, थोडा आसन व्यायाम करो, परिवार से बात करो, संयम करो I तो जिस गति को और प्रचंडता को हमने प्रगति का निशान माना था उस गति और प्रचंडता से विथड्रा करना: अपने आप को वापिस लेना: अकेला यही मार्ग है I

और हम सबको घर में बैठा कर भगवान अपनी प्रकृति में आवश्यक मरम्मत कर रहे हैं I हवा शुद्ध हुई है, नदियों का जल शुद्ध हो गया है ओज़ोन की लेयर अपने आप को दोबारा से रिपेयर करके ठीक कर रही है I प्रकृति स्वस्थ हो रही है I

प्रकृति अस्वस्थ तो हमने की थी न फिर ? हमने बिगाड़ा था यह सब I

श्रीमद शंकराचार्य के जन्म जयंती पर हमको विचार करना चाहिए कि जिसको हम प्रगति कहते है वो प्रगति है कि नही I पैसा कमाना, पैसे से वस्तुएँ खरीदना, अनावश्यक संग्रह करना, आराम के साधन बढ़ाये जाना, पैसा नही हो तो क्रेडिट की इकॉनमी में जीना, उधार ले-लेकर चीज़े इकठ्ठी करनाI अपने हाथ से श्रम न करना पड़े, अपने शरीर को मेहनत न करनी पड़े; सब काम मशीन करे; ऐसे साधनI क्या संग्रह, संग्रह के लिए भाग-दौड़ यही प्रगति है ? यही प्रगति होती तो भरभरा के इस तरहां ताश के पत्तों की तरह सब ढह न रहा होता ? 

आजकल कहते है विदेश होकर आये हो न, तो सबको गौरव से मत बताना कि तुम विदेश होकर आये हो; लोग डर जायेंगे I 

क्वारंटिन में जाओ, अकेले रहोI क्यों अकेले रहो ? अकेले रहने से इलाज में तो कोई असर नही पड़ता ? अरे अकेले इसलिए रहो की बाकी सबलोग स्वस्थ रहें: बाकी सब लोग ठीक रहे I हम सब में वहीं आत्मा है I औरो को स्वस्थ रखना है इसलिए मैं क्वारंटिन में रहूँगा I कहाँ पहुँच रहे हैं, उसी एकात्म भाव में न ?

भारत में एक अद्भुत अनुभव आया I प्रधानमंत्री ने शाम को घोषणा कि आज रात से लॉकडाउन है I हवाईजहाज, रेल, बस बंद हो गई I कारखाने लघु उद्योग बंद हो गये I दुकान, बाज़ार, माल्स बंद हो गये I रोज कमाने खाने वाले, रिक्शा वाले, रेड़ी वाले इन सब के साधन बंद हो गये I भारत में एक चमत्कार दिखा I कुछ हफ्ते पहले एक सर्वे छपा कि भारत के 42 प्रतिशत लोगो को अपना भोजन खरीदने का पैसा नही है और उसमे से यह भविष्यवाणी छपी कि एक हफ्ते में लोग भोजन के लिए दंगे पर उतर आयेंगे I सर्वे ने घोषित कर दिया कि फ़ूड रायट्स होंगे I ओहो ! 

कई हफ्ते बीत गये खाने के लिए दंगे नही हुए I ऐसा नहीं कि केवल संघ और विश्व हिन्दू परिषद् ने भोजन की व्यवस्था की है I हमारे मंदिर, हमारे मठ, हमारे गुरूद्वारे, डेरे, आश्रम, स्थानक सबने अपने भण्डार खोल दिए I कितना बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर, कितने साधन ? सब खर्च हो जाने दो I कोई भूखा नही सोयेगा I आरडब्ल्यूएस, क्लब्स, छोटी मोहल्ले की व्यापर की एसोसिएशनस, जिनको भी भगवान ने चार पैसे दिए है वो उसमे से दो पैसे इस बात के लिए बांटने पर तैयार कि जहाँ भोजन की आवश्यकता है, वहां पका हुआ भोजन या सूखा राशन दो I 

काम धंधे तो बंद है कब तक चलेगा पता नही I इकॉनमी का रिसेशन आएगा I इस कोविड का असर तो बाद तक भी होगा पैसा बचाओ। पर यह नहीं हुआI पैसा तो लोग दान कर रहे, खोज कर दान कर रहे I अन्न दान कर रहे हैं। कोई भूखा नही सोयेगा I 

इसकी प्रेरणाऐं क्या हो सकती हैं ? इसकी प्रेरणा भौतिकतावाद तो नहीं हो सकती I इसकी प्रेरणा अधिक से अधिक संग्रह और भोग की प्रवृति नहीं हो सकती I स्टैण्डर्ड ऑफ़ लाइफ नही हो सकती I इसकी प्रेरणा तो 'अहम् ब्रह्मास्मि त्वम् अपि' यही हो सकती है न I 

यह शुभ प्रेरणा हमको श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य के उपदेशों से मिलती है I विवेकानंद जी के उपदेशो से मिलती है I स्वामीजी जिस समय प्लेग से पीड़ित लोगो की सहायता के लिए जुटे हुए थे तो उन्होंने उस समय की भाषा में कहा था कि ये चांडाल, ये डोम, ये भंगी, ये मेहतरI माय पीपल्स, माय ब्रदर्स, माय ब्लड I नही नही तुम इनको छोटा क्यों कहते हो ? अछूत क्यों कहते हो ? मेरे भाई, मेरे परिवार मेरे रक्त के हैं I वेदांत कहता है सब मनुष्यों में ईश्वर विराजमान है I 

इसलिए मैं भोजन करूँ और मेरे पडोस का व्यक्ति भूखा रह जाये यह ईश्वर की अवज्ञा है, यह महापाप है I कल जो होगा भुगत लेंगे, जो समय आएगा निबटा लेंगे I कोई भूखा नही सोयेगा, मेरे सारे साधन भगवान् ने दिए है, भगवान के काम में मैं उनको खर्च कर दूंगा I ऐसा शुभ संकल्प ये हमारे वेदांत के संस्कारों से हमें मिलता है I

एक तरफ गीता में बताई गई आसुरी संपत्ति है I जिसमे प्रयोगशाला में प्रयत्नपूर्वक ये वायरस पैदा किया जाता है, कैमिकल वेपन्सI आधिपत्य की होड़, दुनिया पर कब्ज़ा करने की आकांक्षा I उसमे से जितना भी नुकसान हो जायेगा हो जायेगा I जितने लोग मर जायेंगे मर जायेंगे I राज करूंगा मैं I इस आकांक्षा और इन आकांक्षओं की स्पर्धा से शांति नही आयेगी, सुख नही आयेगा, संतोष नही आयेगा I इससे निकलना होगाI संग्रह और भोग की मानसिकता से निकलना होगा I संयम होना, जीवन का उद्देश्य होना, वह उद्देश्य मानव की प्रगति के साथ में समस्वर होना I इस प्रकृति में ईश्वर देख कर के इसका नुकसान नही करना I सब मनुष्यों में ईश्वर देख करके सबके साथ बढने की कामना करना I इसी एकात्म बोध को हम शंकराचार्य जी की जयंती पर पुनः अपने मनों में स्थिर करें, भक्तिभाव से धारण करें तो कोरोना संकट निबटेगा और कोविड के बाद की दुनिया शुभ और आनंद की दुनिया होगी I